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________________ उत्तरी भारतके अन्य राजा व जैनधर्म। [१७३ 'थे। उनके टूट जानेपर ये पांच मंदिर बनवाये गये है। दो चट्टानोपर लेख खुदे हुए है। उनमें से एक वि० सं० १२२६ फाल्गुण वदी ३ का चौहान राजा सोमेश्वरके समयका लोलाकका खुदवाया हुआ ' है, जिसमें लोलाक एवं उनके पूर्वजोंके धर्म-कार्योका खूब वर्णन है। अजमेरके चौहान राजा पृथ्वीरान (दूसरे) ने मोराकुरी गांव और 'चौहान नृप सोमेश्वरने रेवणा गांव श्री पार्श्वनाथजीके उक्त मंदिरको भेट किये थे। दूसरे चट्टानपर 'उन्नत शिखर पुराण' खुदा हुआ है। इन उल्लेखोंमे अजमेरके चौहान राजाओंका जैनधर्मके प्रति अनुराग प्रगट है।" पन्द्रहवीं शताब्दी तक राजपूतानाके समान सिध और पक्षा वमें भी जैनोंका उल्लेखनीय अस्तित्व था । सिंधु और पंजावमें मध्यकालके बने हुये जैन मंदिर आदि इस जैनधर्म। वातके साक्षी है। सन् १२४० ई०में ब्रह्मक्षत्र गोत्रके अल्हण और दोल्हणने पञ्जाबमें कांगडा जिलेके कीर ग्राममें एक महावीर स्वामीका मंदिर बनवाया था। तक्षशिलाके पासवाले जैन अतिशय क्षेत्रपर भी इस समयका जैन शिल्प मिलता है। सं० १४८४मे जयसागर उपाध्याय द्वारा रचित 'विज्ञप्तित्रिवेणिः' नामक पुस्तकसे प्रकट है कि उनके पहलेसे 'सिंध और पञ्जाबमें जैनोंकी घनी वस्ती थी। मरुकोट्ट, नंदनवन और कोटिलग्राम आदि प्रसिद्ध जैनतीर्थ थे । 'सर्वसाधारण जनताकों और रानादिकोंको भी उस समय जैनधर्मसे बहुत कुछ सहानुभूति थी।' १-राइ०, भा० १ पृ०३६३ । २-डिजैबा०, मा० १ पृ०४२ ३-एजाई नोट्स।
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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