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________________ गुजरातमें जैनधम व श्वे० ग्रंथोत्पत्ति । [ १४३ है कि वहां दिगम्बर जैनोंमें दिग्गज विद्वानोंका प्रायः अभाव था । 'नेमिनिर्वाण काव्य' और 'वाग्भट्टालंकार' के कर्ता सोमश्रेष्टीके पुत्र . - वाग्भट्ट तो महाराज जयसिह के प्रधान मंत्रियोमे से थे । ' भक्तामर कथा' में वर्णित राजा प्रजापाल यहीं जयसिह प्रतीत होने है। तथा इस कथामे राजा कुमारपाल और उसके मंत्री आवडका भी उल्लेख है । ' २ I 3 इन कथाओंसे तत्कालीन जैनधर्मका महत्व प्रगट होता है । अंकलेश्वरके राजा जयसेन मुनि गुणभूषणको आहारदान देकर पुण्य संचय करते थे । दिगम्बर जैनमुनि देशभर मे विचरते हुये जैन - धर्मका उद्योत करते थे । गुजरातके देवपुर नामक नगर में एक मुनि जीवनन्दी संघ सहित पहुंचे थे । वहा जैनोका नामनिशान नहीं था । वह शैवमंदिरमे गये और लोगोंको उपदेश देकर जैनी बना लिया और इस प्रकार सब संघको आहारदान पानेकी सुविधा कर दी। इस घटना तब तक जैनधर्म के उदाररूपका पता चलता है, किन्तु उपरान्त कालमें जैनधर्मकी यह उड़ाग्ता लोगोने भुलादी । इस प्रकार गुजरातमें दिगम्बर जैविक अतिव भी प्रभावशाली रहा है। उसका प्रभाव, मालूम होना, श्वेताम्बरों पर भी पडा था; यही कारण है कि संवत् ७०५ से श्रीकलश नामक एक श्वेताम्ब - राचार्यने कल्याण नामक स्थान पर यापनीय संघकी स्थापना की थी; जिसमें मुनियोंको नग्न रहना दिगम्बरोकी भाति आवश्यक ठहराया था । स्त्री मुक्ति आदि मान्यतायें इस संवमें श्वेतांबरों के समान थीं x १ - जैप्रा० पृ० २४० | २ भक्तामर कथा, काव्य २९ । ३ - जैप्रा० पृ० २४० | x जेहि० भा० १३ पृ० २५० ।
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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