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________________ १३६] संक्षिप्त जैन इतिहास । चद्दरपर विठलाकर प्राण रहित कर दिया था। और फिर सेनापति अम्बडको उसने ललकारा था, किन्तु धर्मात्मा वीर अम्बडने इस धर्मद्रोही राजाकी सेवा करना स्वीकार नहीं की। उनने दृढ़ता और निर्भीकतासे कहा कि इस जन्ममे मेरे देव श्री अरहंत भगवानके सिवा और कोई नहीं है। गुरु हेमचन्द्राचार्य रहे है और कुमारपाल स्वामी थे । इनके अतिरिक्त मैं किसीकी सेवा नहीं कर सक्ता । अजयपाल यह सुनते ही आग बबूला होगया । अबड और अजवपालका युद्ध हुआ और अंबड अपने धर्म और राजाके लिये उसमे वीर गतिको प्राप्त हुआ। अत्याचारी अजयपाल भी अविक दिन जीवित न रहा । तीन वर्षके भीतर ही उसके एक दरवानने उसका कतल कर दिया । अजयपालके वाढ मूलराज द्वितीय और भीम द्वितीय नामक राजा इस वंशमे और हुये थे और इनके साथ ही सन् १२४२ मे इस वंशका अन्त होगया। भीमके बाद वाघेलवंशने सन् १२१९ से १३०४ तक गुज रातपर राज्य किया था, जो सोलंकी वंशकी वाघेलवंश और ही एक शाखा थी। इस वंशका पहला राजा जैनधर्म। अर्ण कुमारपालकी माताकी वहनका पुत्र था। इसने सन् १९७० से १२०० तक अनहिलवाडासे दक्षिण पश्चिम १० मील वाघेला नामक ग्राममे राज्य किया था। इनका उत्तराधिकारी लवणप्रसाद था। जिस समय भीम द्वितीय उत्तरमे अपनी सत्ता जमानेमे व्यस्त था, उसी समय इसने घोलका और उसके आसपासके देशोंपर अधिकार जमा लिया था। १-सडिजै०, पृ० १२-१३ ।
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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