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________________ १३२] संक्षिप्त जैन इतिहास । प्रतिष्ठा हुई थी। तब कुमारपाल अपनी सभा मण्डली सहित पधारे थे। बाहडने शत्रुजयके पास बाहडपुर बसाया था और 'त्रिभुवनपाल' नामक जैन मंदिर बनवाया। गिरनारपर सीडिया वनवाई थी और सोमनाथके मंदिरका जीर्णोद्धार किया था। पाटण, धंधुका आदि स्थानोंपर भी मंदिर बनवाये थे। कुमारपाल अपने प्रारंभिक जीवनमे शैवधर्मानुयायी था और __ मास-मद्यसे उसे परहेज न था। वह पशुकुमारपाल व जैनधर्म । ओंकी बलि देता था। किन्तु श्री हेमचंद्रा चार्यके उपदेशसे कुमारपालको जैनधर्ममे रुचि हो गई और उसने सन् ११५९ मे प्रगटतः जैनधर्मको ग्रहण कर लिया। कुमारपालने श्रावकके व्रतोको धारण किया था और उसने धर्मप्रचारके लिये बहु प्रयास किये थे। कुमारपालके जैनी होने पर भी उसके नागर ब्राह्मण पुरोहितोंने अपनी पुरोहिताई छोडी नहीं थी। जैनधर्मके संसर्गमे आकर कुमारपालकी बिल्कुल कायापलट होगई । वह एक बडा अहिंसक वीर हो गया। मद्य-मांसादि सब ही उससे छूट गये। उसने अहिसा धर्मका खूब प्रचार किया । अपने राज्यमे अभयदान सूचक — अमारी घोष ' उसने कई वार कराये थे । जीवहत्या करनेवालेको प्राणदण्ड नियत किया था। वैसे उसने प्राणदण्ड उठा दिया था। बनारसके राजा जयचंद्रके दरबारमे उसने उपदेशक भेजे थे कि वह अपने राज्यमें हिसाका निषेध कर दे । अपने पडोसके कमजोर राजाओंके अधिकारोंको भी १-बंगाजैस्मा० पृ० २०९-२१० । २-राइ० भा० १ पृ० ११४ । ३-अहिइ० पृ० १९० ।
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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