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________________ - गुजरातमें जैनधर्म व श्वे० ग्रन्धोत्पत्ति। [११७ मकार वर्तमानमें श्वेतांबरोंके जो आगम ग्रंथ मिलते हैं, वह ई० छठी शताब्दिके संशोधित और लिखे हुये है। उन्हें श्रुतकेवली भद्रबाहु द्वारा प्रतिपादित यथाजात अंग ग्रन्थ बतलाना एक अति साहसी वक्तव्य है। श्वेतांबर निरुक्तियां भी इन आचार्यकी रचना नहीं है। यह विद्वान् प्रगट कर चुके है। साथ ही श्वतांवर आगम ग्रन्थोंका सादृश्य वौद्धोंके पिटक ग्रन्थोंसे बहुत कुछ है। बौद्धोंके पिटक-ग्रन्थ श्वे० ग्रंथोंका वौद्ध पाली भाषामें है और पाली भाषा श्वेतावर ग्रंथोंसे सादृश्य । जैनोंके अंगग्रन्थोंकी अर्द्ध मागधी भाषासे प्राचीन है। इस अवस्थामें यह कहा जासकता है कि अर्द्धमागधीमें पाली भाषासे बहुत कुछ लिया गया है। साथ ही हमें मालम है कि वौद्धोंके पिटक ग्रंथोंकी व्यवस्था श्व० जैनोंके पाटलिपुत्रवाले संघके बहुत पहले होचुकी थी और वह लिपिवद्ध भी श्वेतांबर जैनोंके अंग ग्रन्थोंके लिखे जानेके पहले होचुके थे।' अतएव यह संभव है कि श्वेतांबर आगम ग्रंथोंमें बहुत कुछ बौडोंके पिटकत्रयसे लिया गया हो। बौद्ध श्वे. जैनोंपर इस प्रकारका आक्षेप भी करते हैं। वौद्ध यात्री हुएनत्सांग लिखता है.-"(सिंहपुर ) स्तूपकी वगलमें थोड़ी दूरपर एक स्थान है, जहां श्वेतांबर साधुको सिद्धातोंका ज्ञान हुआ था और उसने सबसे पहले धर्मका उपदेश दिया था।...इन लोगोंने अधिकतर बौद्ध पुस्तकोंमेंसे सिद्धांतोंको १-जैनसूत्र (. B B.) भूमिका भा० २ पृ० ३९ व उसू० भूमिका पृ० १-३२ व सर आसुतोप मिमेरियल वाल्युम पृ० २१ । २-इंहिका०, भा० ४ पृ० २३-३० । ३-भमवु०, पृ० १८८ ।
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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