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________________ १०४] संक्षिप्त जैन इतिहास । था और उसका पुत्र अजितजय गज्याधिकारी हुआ था, जिसने जैन धमकी रक्षा की थी। यशोधर्मनकी मृत्यु सन् ५३३ ई० के लग-भग हुई अनुमान की जाती है और फिर उसके बाद दो तीनमो वर्ष -तक मालवाके इतिहासका कुछ भी पता नहीं चलता है । हो सकता है कि यशोधर्मन्का पुत्र राज्याधिकारी हुआ हो, जैसे कि जैनग्रंथ 'प्रगट करते है । जैनोंका आचार्य-पट्ट इस समय भी उज्जैनमे था । (५) हर्षवर्धन और चीनीयान्त्री हुएनसांग । मिहिरकुलकी पराजयके वाढ भारतका राज्य छिन्नभिन्न होगया। छठी शताब्दिमे कोई ऐसा राजा नहीं था जो इपवर्द्धन। सारे देशको अपने अधिकारमे करता । इस शताब्दिमे अनेक छोटे २ स्वतंत्र राज्य स्थापित होगये थे। छठी शताब्दिके अन्तिम भागमे थानेश्वरके राजा 'प्रभाकर वर्द्धनने उत्तरीय भारतमें अपना राज्य स्थापित किया था। सन् ६०४ ई० मे उसकी मृत्यु होगई । उसका ज्येष्ठ पुत्र राज्यवर्धन शशाङ्कनामक राजाके हाथोंसे धोखेमे मारडाला गया था । मालवा नरेशके बन्दीगृहसे अपनी वहिनको मुक्त करनेके लिये उसने उनसे युद्ध किया था और उसमें विजय प्राप्त की थी। राज्यवर्धनके बाद उसका भाई हर्षवर्धन हुआ था। वह सन् ६०६ में गद्दीपर बैठा था। हर्ष श्रीहर्ष और शिलादित्यके नामसे भी प्रसिद्ध था । वह बड़ा वीर था । उसने बंगाल आसामसे काश्मीर
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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