SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुप्त साम्राज्य और जैन धर्म । [९५ था। कहने हे कि देवगढ़मे पारागाह और उनके दो भाई देवपति और खेवपति बड़े प्रभावशाली थे। उनने देवगढ़मे कई एक जैन मंदिर बनवाये थे। न्कन्दगुप्तने हूणोंको परास्त कर दिया था, परन्तु वे हताश ___नहीं हुये । उनके आक्रमण भारतपर बराबर गुप्त राज्यकी अवनति होने से। 'उनके राजा तोरमाणने गुप्त व राज्यप्रवन्ध । राज्यका पश्चिमीय देश जीत लिया। और सन् ५१० ई० तक राजपूताना, मालवा, गुजरात. मध्यप्रदेश आदि देश हुणोके आधीन होगये । इस छिन्न भिन्न होने हुये साम्राज्यकी दशाको सम्भालनेके लिये गुप्तवंशके अंतिम राजा भानुगुप्सने प्रयज्ञ विया, परन्तु उसे सफलता प्राप्त न हुई, और गुप्तवंग नष्ट होगया । इस वशके सब ही राजा बड़े योग्य और तेजम्वी थे । उन्होने अपने अपने राज्यका अच्छा प्रबन्ध कियाथा, जिसमे प्रजा सुखी थी । उमसमयकी आर्थिक स्थिति बड़ी अच्छी थी। तब उत्तर और मध्यभारतमें छै आनेका मन सवामन नेल विकता था और एक रुपया एक मनुष्य के तीन महीनेके भोजनके लिये पर्याप्त होता था।' विद्वानोका आदर भी विरोप था और साहित्य व कलकी उन्नति भी खूब हुई थी। गुप्तकालमें ब्राह्मण, जैन और बौद्धधर्म मुख्य थे। हैवेल सा० कहते है कि ई० तीसरी शताब्दितक प्रायः १-सप्रास्मा०, पृ० ४७। २-भाड०, पृ० ९३।३-माप्रारा० मा० २ पृ० २२६-२२७ ।
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy