SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७६] संक्षिप्त जैन इतिहास। बनवाकर विराजमान करदी गई थी और वहीं निकटमें भगवान चरणचिह्न भी हैं। इस प्रकार नाहिरा शास्त्रोंमें बताये हुये केव. लज्ञान स्थानके वर्णननसे इस स्थानकी मारूति ठीक एक्सी बैठती है और इससे यह भ्रम होसक्ता है कि यही म्यान भगवान महावीरजी केवलज्ञान प्राप्त करनेका दिव्यस्थान होगा; किंतु जैन समाजमें यह स्थान केवल एक अतिशय तीर्थरूपमें 'महावीरनी के नामसे मान्य है । तिसपर शास्त्रोंमें बताया हुआ केवलज्ञान स्थान कौसाम्बीसे भगाड़ी कहीं होना उचित है; क्योंकि उज्जयनीसे कौसाम्बीको जाते हुये उपरोक्त अतिशयक्षेत्र पीछे मार्गमै रह जाता है। और श्वेतांबर शास्त्र जम्भक ग्राम भादिको लाढ देश में स्थित बतलाते हैं। अतः यह केवलज्ञान स्थान मगधदेशमें कहीं होना युक्तिसंगत है। किन्हीं दिगम्बर जैन शास्त्रों में उसे मगरदेशमें बतलाया भी है। लाढदेशका विनयभूमि प्रान्त आजकलके बिहार ओड़ीसा प्रांतस्थ छोटा नागपुर डिवीजनके मानभुन और सिंहभूम निलों इतना माना गया है । स्व० नंदलाल डे महाशयने सम्मेदशिखर पर्वतसे २५-३० मीलकी दुरीपर स्थित झरियाको जम्भक ग्राम प्रगट किया है जो अपनी कोयलोंकी खानोंके लिये प्रसिद्ध है और बराकर नदीको ऋजुकूला नदी सिद्ध की है।' । १-चीर मा० ३ पृ. ३१७ पर हमने भ्रमसे उसी स्थानको केव.. लज्ञान स्थान अनुमान किया था । २-यसू० Js. I, p. 268.. वृजेश-पृ- +-इहिक्वा०-मा०-४-१०----X६ व वीर . मा० ५ पृ.
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy