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________________ ७४] संक्षिप्त जैन इतिहास । प्राप्त करनेके समयसे दो वर्ष पहिले गोशालने स्वधर्म प्रचार प्रारम्भ किया, बतलाते हैं। भगवान महावीर उन्जनीसे विहार करके कौशांबी पहुंचे थे। महावीरको केवल- यहांपर उनका आहार दलित अवस्थामें ही जानकी प्राप्ति। रहती हुई राजकुमारी चन्दनाके यहां हुमा था, जिससे भगवानका पतितोद्धारक स्वरूप स्पष्ट होकर मन मोह लेता है। कौशांबीसे भगवान पुनः एकांतवासमें निश्चल ध्यानारूढ़ रहे थे। उन्होंने एक टक बारह वर्ष तक दुद्धर तपश्चरण करनेका कठिन परन्तु दृढ़तम आत्मबल प्रगट करनेवाला नियम ग्रहण किया था। इस बारह वर्षके तपश्चरणके उपरांत उनको पूर्णज्ञानकी प्राप्ति हुई थी। दिगम्बर और श्वेतांवर दोनों ही संप्रदायोंके शास्त्र जीवनकी इस मुख्य घटनाके समय महावीरजीकी अवस्था व्यालीप वर्षकी बतलाते हैं। श्वेतांबर शास्त्र कहते हैं कि उपरोक्त बारह वर्षकी घोर तपस्याका अभ्यास उनने काढ़ देशके दो भागों-वजभूमि और सुमभूमिके मध्य नाकर किया था और उनको वहीं देवलज्ञानकी प्राप्ति हुई थी। महावीरकी महान विजयके ही कारण । लाढका उक्त प्रदेश 'विनयभूमि' के नामसे प्रख्यात् हुआ था। भगवानने 'विजय मुहूर्त में ही सर्वज्ञपद पाया था। उस समय यह काढ़ देश बड़ा दुश्चर था और भगवानको यहापर बड़ी गहन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। किन्तु - 1-Appendiss. २-हरि० पृ० ५७५ व Js. I. p. 269. '३-J8. I, P, 263. ४-इहिक्क.. भा० ४ पृ. ४४ । ५-केहिइ. पृ. १५८ ।
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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