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________________ संक्षिप्त जैन इतिहास । दोनों ही साधु पुण्य-पापको भी नहीं मानते थे। अतः गोशाल और पूरणका एक ही मतके अनुयायी होना सिद्ध है और बहुत करके वह गुरु शिष्यवत थे । इस दशामें जैनाचार्यने उन दोनोंका नामोल्लेख एक साथ प्रकट करके, यह स्पष्ट कर दिया है कि उनका सम्बंध अवश्य एक ही मतसे था; निसको आनीविक कहते थे। कुछ विद्वान् गोशालको आजीविक मतका नेता और पूरणको अचेलक मतका मुखिया समझते हैं; किंतु यह यथार्थताके विपरीत है । वास्तवमें उस समय अचेलक नामका कोई स्वतंत्र संप्रदाय 'अचेला निधोका नहीं था। अंगुत्तर निकायमें उस समय के द्योतक है । तब इस प्रख्यात मतोंकी जो सुची दी है, उसमें नामका कोई अलग अचेलक नामका कोई संप्रदाय नहीं है। सम्प्रदाय नहीं था। मालूम तो ऐसा होता है कि अचेलक शब्द उस समय श्रमण शब्दकी तरह नग्न साधुओंके लिये व्यवहन होता था और मुख्यतः उसका प्रयोग जैन संप्रदाय और उसके साधुओंके लिये होता था । निग्रंथ श्रावकका पुत्र सच्चा अचेलक लोगोंकी जिन क्रियायोंका उल्लेख करता है, वह ठीक जैन मुनियोंकी क्रियायोंके समान है । इसके अतिरिक्त और भी कई स्थलोंपर बौद्धोंने 'अचेलक' शब्दका प्रयोग जैनोंके लिये किया है। अतएव आनी. . 4-Js. II. Intro. XXVIII ff. २-भमबु० ० २०८ । ३-वीर भा० ३ ० ३१९-३२१ व भा० ४ पृ. ३५३ | ४-चीनी त्रिपिटकमें भी 'अचेलक का व्यवहार जैनोंके लिये हुआ है (वीर ४।३५३), दीनि० उ० पृ. १३ व आजी० १३५ ।
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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