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________________ AWAR ५८] संक्षिप्त जैन इतिहास । 'देवदृष्य वस्त्र' से क्या भाव है, यह श्वेताम्बर शास्त्रोंमें नहीं बतलाया गया है । वह कहते हैं कि देवदृष्य वस्त्र पहिने हुये भी भगवान नग्न दिखते थे। इसका साफ अर्थ यही है कि वे नग्न थे । एक निष्पक्ष व्यक्ति उनके कथनसे इसके अतिरिक्त और कोई मतलब निकाल ही नहीं सक्ता है | फलतः श्वेताम्बरीय शास्त्रोंमें भी भगवानका नग्न दिगम्बर मुनि होना प्रगट है। अचेलक मथवा नग्न दशाको उनके 'आचारांग सूत्र में सर्वोत्कष्ट भवस्था बतलाई । अचेलकसे भाव यथानात नग्न स्वरूपके अतिरिक्त यहाँपर और कुछ नहीं होसते; यह बात बौद्ध शास्त्रोक कथनसे स्पष्ट है। बौद्ध शास्त्रोंमें जैन मुनियों अथवा निग्गन्ध श्रमणोंको सर्वत्रः नग्न साधु लिखा है और यह साधु केवल भगवान महावीरके तीर्थके ही नहीं है, प्रत्युत उनसे पहले भगवान पार्श्वनाथनीके तीर्थके भी हैं । अतएव भगवान पार्श्वनाथ एवं अन्य तीर्थकरोंका पूर्ण नग्न दशाको साधु अवस्थामें धारण करना प्रमाणित है। श्वेताम्बरीय भाचारांग सूत्र में भी शायद इसी मपेक्षा लिखा है कि. 'तीर्थङ्करों ने भी इस नग्न वेशको धारण किया था। इससे प्रत्यक्ष प्रगट है कि भगवान महावीरजीके अतिरिक्त अवशेष तीर्थकरोंने १-कसू० स्टीवेन्सन, पृ० ८५ फुटनोट । २-J8. Pt. I. pp. 55-56. ३-दीनि० पाटिकमुत्त; वीर वर्ष ४ पृ० ३५३ । ४-भमबु० पृ. ६०-६१ और २४९-२५५, जैसे दिव्यावदान पृ० १८५, जातकमाला (S. B. B. Vol. I.) पृ. १४५, महावग्ग ८, १५, ३,१, ३०, १६, डायोलॉग्स ऑफ दी बुद्र भा० ३ पृ० १४. इत्यादि । ५-भमबु० पृ० २३६-२४०। ६-J. S.I. pp. 57-58. -
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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