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________________ ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर। [४९ मालूम होता है कि उनके आधीन उनके कुलके अन्य राजा थे; जैसे कि एक कुलनृपका उल्लेख ऊपर होचुका है। मेन शास्त्र कहते हैं कि राजा सिद्धार्थने मात्ममति और विक्रमके द्वारा अर्थ-प्रयोजनको सिद्ध कर लिया था। वे विद्यामें पारगामी और उसके अनन्य प्रसारक थे। सचमुच 'आपने (विद्या. ओके) फलसे समस्त लोकको संयोजित करनेवाले उस निर्मल रानाको पाकर राजविद्याएं प्रकाशित होने लगी थीं। फलतः यह प्रकट है कि भगवान महावीरजी एक बुद्धिमान, धर्मज्ञ, परिश्रमी और प्रभावशाली गनाके पुत्र थे। गना सिद्धार्थका मुख्य निवाप्तस्थान कुण्डग्राम अथवा कुण्डपुर था। वह कोल्लागसे भिन्न और वैशालीके सन्निट कुण्डलाम । था. यह पहले बताया जाचक है। वौद्ध ग्रन्थ 'महाग' के उल्लेखसे भी कुण्डग्राममें नाथ अथवा ज्ञातृवंशी क्षत्रियों का होना प्रकट है। वहां लिखा है कि एक मस्तवा म० गौतम बुद्ध कोलिग्राममें ठहरे थे, जहां नाथिक लोग रहते थे। बुद्ध नित भवन में ठहरे थे उपका नाग नाथिक-इटिका भवन' (निन्नकावप्रथ) था । कोटिग्रामसे वह वैशाली गये थे। सर रमेशचंद्र दत्त इस कोटियामको कुण्डग्राम ही बतलाते हैं और लिखते हैं कि " यह कोटिग्राम वही है जो कि जैनियों का कुण्डग्राम है और बौद्ध ग्रंथों में जिन नातिकों का वर्णन है, वे ही ज्ञात्रिक क्षत्री थे।" यह कोटियाम अथवा कुण्डग्राम वैशालीका समीपवर्ती नगर । १-महावग्ग ३३०-३१ (SBE.XVII) पृ० १०८।२-भम० पृ० ६८1
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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