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________________ ४२] संक्षिप्त जन इतिहास । राजा चेटकका यह पारवारिक परिचय बड़े महत्वका। उपरान्तमें लिच्छिवि इससे प्रगट होता है कि उससमयके प्रायः ___ वंश। मुख्य राज्योंसे उनका सम्पर्क विशेष था। जैनधर्मका विस्तार भी उससमय खूब होरहा था। लिच्छिवि प्रनातंत्र राज्य भी उनकी प्रमुखतामें खूब उन्नति कर रहा था। किन्तु उनकी यह उन्नति मगध नरेश अजातशत्रुको असह्य हुई थी और उसने इनपर आक्रमण किया था, यह लिखा जाचुका है। किन्हीं विद्वानों का कहना है कि अभयकुमार, जिसका सम्बन्ध लिच्छिवियोंसे था, उससे डरकर अनातशत्रुने वैशालीसे युद्ध छेड़ दिया था; किंतु जैन शास्त्रों के अनुसार यह संभव नहीं है; क्योंकि अभयकुमारके मुनिदीक्षा ले लेनेके पश्चात् अजातशत्रुको मगधका राजसिंहासन मिला था। अतः अभयकुमारसे उसे डानेके लिये कोई कारण शेष नहीं था। ____ यह संभव है कि मनातशत्रुके बौद्धधर्मकी ओर आकर्षित होकर अपने पिता श्रेणिक महारानको कष्ट देनेके कारण, लिच्छिवियोंने कुछ रुष्टता धारण की हो और उसीसे चौकन्ना होकर अजातशत्रुने उनको अपने आधीन कर लेना उचित समझा हो। कुछ भी हो, इस युद्धके साथ ही लिच्छिवियोंकी स्वाधीनता जाती रही थी और वे मगध साम्राज्यके आधीन रहे थे। सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्यके समयमें भी वह प्रजातंत्रात्मक रूपमें राज्य कर रहे थे; निसका अनुकरण करनेकी सलाह कौटिल्यने दी थी। किन्तु जो स्वतंत्रता उनको चन्द्रगुप्तके राज्यमें प्राप्त थी, वह अशोकके समय -क्षत्री लैन्स०, पृ. १३ -
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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