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________________ लिच्छिवि आदि गणराज्य। उसपर विचार करके सव सहमत होते थे, तो वह पास होजाता था, किन्तु विरोधके होनेपर वोट लेकर निर्णय किया जाता था। अनुपस्थित सदस्यका वोट भी गिना जाता था। इन दरवारोंकी कारवाई चार-चार सदस्य (रामा) अंकित करते जाते थे। इनमें नायक अथवा चीफ मजिस्ट्रेट होते थे, जो राज्यसत्ता सम्पन्न कुलोंद्वारा चुने जाते थे। इन्हीं के द्वारा दरबार में निश्चित हुए प्रस्तावोंको कार्यरूपमें परिणत किया जाता था। इनमें मुख्य राना (सभापति), उपराजा, भण्डारी, सेनापति आदि भी थे । इनका न्यायालय भी विलकुल मादर्श ढंगका था; नहां दृषका दूध और पानीका पानी करनेके लिये कुछ उठा न रक्खा जाता था। वृद्धि संघमें सर्व प्रमुख लिच्छिविक्षत्री थे। यह वशिष्ट गोत्रके लिच्छिविक्षत्रियोंका इक्ष्वाकुवंशी क्षत्री थे। इनका लिच्छिवि सामान्य परिचय। नाम कहांसे और कैसे किस काल में पड़ा, इसके जानने के लिये विश्वास योग्य साधन प्राप्त नहीं हैं किंत इतना स्पष्ट है कि निससमय भगवान महावीर इस संसारमें विद्यमान थे और धर्मका प्रचार कर रहे थे, उस समय वे एक उच्चवंशीय क्षत्री माने जाते थे। अन्यान्य क्षत्री उनसे विवाहसम्बन्ध करने में अपना : ___ चड़ा गौरव समझते थे । भगवान महावीरके पिता भी इन्हीं कि गण राज्य अर्थात 'वनिरानसंघ' में सम्मिलित थे। लिच्छिवि एक परिश्रमी, पराक्रमी.और. समृद्धिशाली.जाति होने के साथ ही साथ धार्मिक रुचि और भावको रखनेवाली थी। - यह.लोग बड़े दयालु और परोपकारी थे। इनकी शरीर. आकति भी सुडौल और सुन्दर -१-भम० पृ५७-६३ ।। - --
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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