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________________ २८] संक्षिप्त जैन इतिहास । -गुफावाले शिलालेखमें निस नन्दका उल्लेख आया है, उसे श्रीयुत काशीप्रसाद जायसवालने नन्दिवर्द्धन ही बतलाया है। इसलिये वे नन्दराजाओंको दो भागोंमें (१) प्राचीन (२) और नवीन नन्द रूपमें स्थापित करते हैं। नन्दिवर्डन भी जैनधर्म भक्त प्रतीत होते हैं; क्योंकि कलिङ्ग विजय करके वहांसे वह एक जैन मूर्ति भी लाये थे और उसे उनने सुरक्षित रक्खा था। कनिमें उनने एक नहर भी बनवाई थी। अजातशत्रु, उदयन और नन्दिवर्द्धनकी मूर्तियां भी मिली हैं, जो कलकत्ते और मथुगके मनायबघरमें रक्खी हुई हैं। इससे इन रानाओंका विशेष प्रभावशाली होना प्रकट है। नन्दिवईनके द्वारा मगधराज्यकी उन्नति विशेष हुई दृष्टि पड़ती है, कि उसका आधिपत्य कलिङ्ग देशतक व्याप्त होगया था। महानन्दिनुके सम्बन्धमें कुछ अधिक ज्ञात नहीं होता। यद्यपि यह प्रकट है कि उसकी शूद्रा रानीसे महापद्मनन्दका जन्म हुआ था, जिससे नंदवंशकी उत्पत्ति हुई थी और वह मगधराज्यका अधिकारी हुआ था। - - - ,' १-जविभोसो, भा० ४ पृ. ४३५। . २-जबिओमो०, भाग ४ पृ० ४६३ । ". . रेजविभोसो०, भाग १ पृ. ८८-१६६ भा० ६ पृ. १७३।
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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