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________________ २४] संक्षिप्त जैन इतिहास । अपघात कर लिया था। इस हृदयविदारक घटनासे वह बड़ा दुखी हुआ और वरवश अपने हृदयको शांति देकर राज्य करने लगा किन्तु महाराणी चेलनी रानमहलोंमें अधिक न ठहर सकी थीं। उन्होंने भगवान महावीरजीके समोशरणमें जाकर मार्यिका चन्दनाके निकट दीक्षा ग्रहण करली थी।' ___ उधर अनातशत्रुका भी चित्त बौद्धधर्मसे फिर चला था। और जब भगवान महावीरके निर्वाण हो जानेले उपरान्त, प्रमुख गणघर इन्द्रभूति गौतम, श्री सुधर्मास्वामी के साथ विपुलाचलपर्वतपर आकर विराजमान हुये थे, तब उसने सपरिवार श्रावकके व्रत ग्रहण क्रिये थे। ऐसा मालूम होता है कि इसके थोड़े दिनों बाद ही वह संसारसे बिरकुल विरक्त होगये, और अपने पुत्र लोकपाल (दर्शक). को छोटे भाई नितशत्रुके सुपुर्द करके स्वयं जैन मुनि होगये थे। उनका देहान्त ५२७ ई० पू०में हुआ प्रगट किया गया है और यह समय इन्द्रभूति गौतम और सुधर्मास्वामीसे मिलकर उनके जैन धर्म धारण करने आदि घटनाओंसे ठीक बैठता है; क्योंकि इन्द्रभूति गौतमस्वामी भगवान महावीरके पश्चात केवल बारह वर्ष और जीवित रहे थे। १-श्रेच०, पृ. ३६१ व वृजेश० पृ० २५ । २-उपु०, पृ० ७०६ व केहिइ०, पृ० १६१ । ३-वृजेश०, पृ० २५ । ४-अहिद०, पृ० ३९-किन्तु मि० जायसवाल कुणिकका राज्यकाल ३४ वर्ष ( ५५२-५१८ ६० पू०) बताते हैं; जो ठीक जंचता है । (जविओसो० भा० १ पृ० ११५)। .
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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