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________________ २२] संक्षिप्त जैन इतिहास। महिलाके साथ विवाह किया था और पश्चात वह भी जैन मुनि होगया था । अभयकुमारने भगवान महावीर के मुख्य गणघर.इन्द्र. मृति गौतमके निकट जैन मुनिकी दीक्षा ग्रहण की थी और अंतमें को नाश करके विपुलाचल पर्वतपरसे वह अव्याबाष मोक्षसुखको प्राप्त हुये थे। __ अभयकुमारके जैन मुनि हो जानेके उपरान्त युवराज पद श्रेणिकका अन्तिम कुणिक अजातशत्रुको मिला था। किन्तु जीवन और अजातशत्रु वह इस पदपर अधिक दिन मासीन नहीं बौद्धले फिर जैन। रह सका। श्रेणिन महाराज अपनी बुद्ध अवस्था देखकर आत्महित चिन्तनाने शीघ्र ही व्यस्त हुए थे। एक रोज उन्होंने अपने सामन्तोंको इकट्ठा किया और उनकी सम्मतिपूर्वक बड़े समारोहके साथ अपना विशाल राज्य युवराम कुणिक • मजातशत्रुको देदिया । वे नीतिपूर्वक प्रजाका पालन करने लगे थे। उधर सम्राट श्रेणिक एकान्तमें रहकर धर्मसाधन करनेमें संलग्न हुए थे। यह घटना ई० पू० सन् १९४ में घटित हुई अनुमान "झी जाती है और चूंकि भगवान महावीरका निर्वाण ई-पूर -सन.५४५ में हुआ था, इसलिये भगवानके जीवनकालमें ही श्रेणिकाचा मन्तिम जीवन व्यतीत हुआ प्रगट होता है। कुणिक अजातशत्रुके राज्याधिकारी होनेके किंचित-काल पश्चात ही उनका व्यवहार श्रेणिक महाराजके प्रति बुरा होने लगा था जिनशाल .हते हैं कि पूर्व वैरके कारण अजातशत्रुने उनको काठेके पौनरेनें बंद कर दिया और वह उन्हें मनमाने दुःख देने लगा था। किन्तु । 1-अप्र पृ० १३० । २-अहिइ०, पृ० ३६॥
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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