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________________ - अधिक समय नहीं हुआ कि सरदार पटेलने एक भाषण में कहा था कि. महिंसा वीरोंका धर्म है । और उन्हीं के साथ काका फालेजकरने प्रगट किया था कि जैनधर्म सर्वोत्तम रीतिसे जीवन वर्तनका उपाय बताता है। वह संचा साम्यवाद सिखाता है।" जैनधर्मके विषयमें राष्ट्रीय-नेताओंके यह उदार निःसंदेह ठीक हैं। किन्तु इन उद्वारों का महत्व तब ही स्पष्ट होसक्ता है कि जब नोंक गत जीवन व्यवहारसे अहिंसा धर्मका पालन करते हुये वीरत्व प्रकाश और जीवनकी पूर्णताका चित्र साधारण जनताके हृदयपटलपर अंकित किया जासके । यह होना तब ही संभव है कि जब जनों का इतिहास जनताके हाथों में पहुंचे । जैसे किसी मनुष्यका सन्मान उसके वंश, प्रतिष्ठा मादिका परिचय पानेसे होता है, उसीतरह किसी जातिका मादर उस जाति का इतिहास जाननेसे लोगोंकी दृष्टिमें बढ़ता है । भारत दिगम्बर जैन परिषदने इस आवश्यक्ताको बहुत पहले अनुभव कर लिया था । और तदनुसार अपनी एक 'इतिहास कमेटो भी नियुक्त की थी, जिसका एक सदस्य में भी था। उसीके अनुरूप मैंने " जैन इतिहास" को लिखनेका उद्योग चालू किया था और परिणामतः उसका पहला भाग, जिसमें ईस्वी पूर्व ६०० वर्षसे पहलेका पौराणिक इतिहास संकलित है, प्रगट होचुका है। प्रस्तुत पुस्तक उसी सिलसिलेमें दूसरे भागका पहला खण्ड है। दूसरे भागमें ईस्वी पूर्व छठी शताब्दिसे ईस्वी तेरहवीं शताब्दि तकका इतिहास एकत्र किया जाना निश्चित है। इस पहले
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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