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________________ संक्षिप्त जैन इतिहास | शिशुनाग वंश । ( ई० पूर्व ६४५ से ई० पूर्व ४८० ) ईसा से पूर्व छठी शताब्दिमें भारत में सबै प्रमुख राज्य मगशिशुनागवंशकी घड़ा था और इसी राज्य के परिचयमे भारतका उत्पत्ति । एक विश्वसनीय इतिहास प्रारम्भ होता है । उस समय यहांका राज्यशासन शिशुनागवंशी क्षत्री राजाओंके अधिकार में था । इस वंश की उत्पत्तिके विषय में कहा जाता है कि महाभारत युद्ध में यहां चन्द्रवंशी क्षत्रियोंका शासनाविकार था; किन्तु इस युद्ध में श्रीकृष्णके हाथसे जरासिन्धुके मारे जानेके उपरान्त जव जरा सिन्धुका अंतिम वंशज रिपुंजय मगधका राजा था, तब इसके मंत्री शुकनदेवने वि० सं० से ६७७ वर्ष पूर्व उसे मारडाला और अपने पुत्र प्रद्योतनको मगधका राजा बना दिया था। प्रद्योतनके वंशजोंमें वि० सं०के ६७७ वर्ष पूर्व से ५८५ वर्ष पूर्व-तक पालक, विशाखयूष, जनक और नन्दिवर्द्धनने राज्य किया । इनके पश्चात् इस वंशके पांचवें राजा शिशुनाग नामक हुये थे । १२ ] यह राजा बड़ा पराक्रमी, प्रतापी और ऐसा लोकप्रिय था कि बगाड़ी यह वंश इसीके नामपर 'शिशुनागवंश' के नाम से प्रसिद्ध -हुआ | जैनशास्त्रोंसे इस वंशका भी क्षत्री होना सिद्ध है । वि० सं० के १८९ वर्ष पूर्वसे ४२३ वर्षं पूर्वतक ( ई० पूर्व ६४२ से ४८०) तक राजा शिशुनागसे इस वंशमें निम्नप्रकार दश राजा हुए थे:- (१) शिशुनाग, (२) काकवणे या शाकपर्ण, (३) धर्मपण, (४) क्षत्रौन (क्षेमति, क्षेत्रज्ञ, या उपश्रेणिक), (९) श्रेणिक-
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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