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________________ मौर्य-साम्राज्य। [२५७ उसने उसके मतमें अच्छाई दिखा दी और वह सबका मादर करने रुगा । साम्प्रदायिक दृष्टिसे जैन अशोकके इन वैनयिक भावसे संतुष्ट न हुये और उनने उसके संबन्धमें विशेष कुछ न लिखा। इतनेपर भी अशोकका शासन प्रवन्ध और उसके धर्मकी शिक्षाओंमें जैनत्वकी झलक विद्यमान है। डॉ. कर्न मा० लिखते हैं कि "अशोकके शासन प्रबन्ध बौद्धभावका घोतक कुछ भी न था। अपने राज्यके प्रारंभसे वह एक अच्छा राजा था। उसकी जीवरक्षा संवन्धी आज्ञायें बौद्धोंकी अपेक्षा जैनोंकी मान्यताओंसे अधिक मिलती हैं। अपने राज्यके तेरहवें वर्षसे अशोकका राजघराना एक जैनके समान पूर्ण शाम्भोजी होगया। उनने जीव हत्या करनेवाले के लिये प्राणदंड जैसी कड़ी सना रक्खी थी। जैनराजा कुमारपालनी भी ऐमी ही राजाज्ञा थी। यज्ञमें भी पशुहिंसाका निषेध अशोकने किया था । कहते हैं कि इस कार्यसे उसकी वैदिक धर्मावलम्बी प्रना असंतुष्ट थी। मबुद्धके समयमें बौद्ध. लोग बाजारसे मांस लेकर खाते थे; किन्तु अशोकने भोजनके लिये भी पशुहिंसा बन्द करदी थी, यह कार्य सर्वथा एक नैनके ही उपयुक्त था। प्रीतिभोज और उत्सवोंमें भी कोई मांस नहीं परोस सक्ता था। आखेटको भी अशोकने बन्द कर दिया था। उसने बैलों, अशोककी शिक्षा न बकरों, घोड़ों आदिको बधिया करना भी . ___ धर्मानुसार हैं। बन्द कराया था। पशुओंकी रक्षा और चिकित्साका भी उसने पिंजरापोलके ढंगपर प्रबंध किया था। कहते -ऐ० भा० ५ पृ० २०५ । २-मअशो० पृ०४९।३-अहिइ.. पृ० १८५-१९० । ४-मैअशो० पृ० ४९। -
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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