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________________ मौर्य-साम्राज्य। [२२९ देना इनका कार्य था। मेगास्थनीज लिखता है कि इन गुप्तचरोंपर कोई मिथ्या समाचार देनेका दोषारोपण कभी नहीं हुआ; क्योंकि किसी भी भारतीयसे यह अपराध कभी नहीं बन पड़ा । सचमुच प्राचीन भारतके निवासी सचाई और ईमानदारीके लिये वहत ही विख्यात थे। चन्द्रगुप्तका फौनदारी कानून कठोर था। यदि किसी कारी ___ गरको कोई चोट पहुंचाता, तो उसे प्राणदण्ड ही दण्ड विधान मिलता था। यदि कोई व्यक्ति किसीको अंगहीन कर देता तो दण्ड स्वरूप वह भी उसी अंगसे हीन किया जाता था और हाथ धातेमें काट लिया जाता था। झूठी गवाही देनेवालेके नाक कान काट लिये जाते थे। पवित्र वृक्षोंको हानि पहुंचानेवाला भी दण्ड पाता था । सिरके बाल मुड़ दिये जानेका दण्ड बड़ा लज्जाजनक समझा जाता था। साधारणतः चोरीके अपराधमें अंग छेदका दण्ड दिया जाता था। चुङ्गीका महसूल देनेमें टालमटूल करनेवाला मृत्युदण्ड पाता था। अपराधी कड़ी यातनाओं द्वारा अपराध स्वीकार करने के लिये वाध्य किये जाते थे। चन्द्रगुप्तके फौजदारी कानुनकी यह कठोरता किंचित् मापत्तिजनक कही जा सक्ती है; किन्तु जिन्होंने इंग्लेन्ड आदि यूरोपीय देशोंका निकट मृतकालीन इतिहास पढ़ा है, वह जानते हैं कि इन देशोंमें भी जरार से अपराधके लिये भी प्राणदण्ड देनेका रिवाज था। ऐसा मालूम होता है कि प्राचीनकालमें दण्डकी कठोरतामें १-माइ० पृ० ६४, महिइ० पृ० १२९ और लामाह पृ० १५०, २-भाइ० पृ० ६४ और लामाइ० पृ० १५९-१६० ।
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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