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________________ सिकन्दर - आक्रमण व तत्कालीन जन साधु । [१९९ कहेंगे; क्योंकि अपने से अच्छा पुरुष यदि कोई चाहे तो उसे भलाई करना चाहिये ।" इसके बाद उनने यूनान के तत्ववेत्ताओं में जो सिद्धान्त प्रच किते थे उनकी बाबत पूछा और उत्तर सुनकर कहा कि 'अन्य विषयों में यूनानियों की मान्यताएं पुष्ट प्रतीत होती हैं, जैसे अहिंसा म्यादि, किन्तु वे प्रकृति के स्थानपर प्रवृत्तिको सम्मान देनेमें एक बड़ी गलती करते हैं । यदि यह बात न होती तो वे उनकी तरह नग्न रहनेमें और संयमी जीवन विताने में संकोच न करते; क्योंकि वही सर्वोत्तम गृह है, जिसकी मरम्मत की बहुत कम जरूरत पड़ती है । उनने यह भी कहा कि वे (दिगम्बर मुनि) प्राकृतवाद, । ज्योतिष, वर्षा, दुष्काल, रोग आदिके सम्बन्ध में भी अन्वेषण करते हैं। जब वे नगर में जाते हैं तो चौराहे पर पहुंचकर सब तितरवितर होजाते हैं । यदि उन्हें कोई व्यक्ति मंगूर आदि फल लिये मिल जाता है, तो वह देता है उसे ग्रहण कर लेते हैं । उसके 1 बदले में वह उसे कुछ नहीं देते । प्रत्येक धनी गृहमें वह अन्तः १- ऐड़० पृ० ७०-७१ सन्तोपी और संयमी जीवन वितानेकी शिक्षा देना, दूसरोंके साथ भलाई करनेका उपदेश देना और प्रवृतिको प्रधानता देना, जैन मान्यताका द्योतक है। २ इस उल्लेखसे उस समयके मुनियोंका प्रत्येक वियपूर्ण मिध्यात होना सिद्ध है । ३- आहार क्रियाका art किया गया है । नियत समयपर संघ भाहार के लिये नगर में जाता होगा और वहां चौराहेवर पहुंचकर east अलग २ प्रस्थान कर जोनी टीक ही है । ४-कैसे और कौनसा आहार वे ग्रहण करते है ? इस प्रश्न के उत्तर में महात्मा मन्दनीधने यह वाक्य कहे प्रगट होते है। जैन साधु को एक व्यक्ति भक्तिपूर्वक जो भी शुद्ध निरामिष भोजन देता है, उसे ही वह
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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