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________________ १९४] संक्षिप्त जैन इतिहास । केवली भगवानके समाधिस्थानपर बनते हैं। तक्षशिलामें मान भी कई भग्न जैन स्तुप मिले हैं। (९) 'सूर्यकी प्रखर धूपमें खड़े हुए दिगम्बर (नग्न) साधुओंसे सिकन्दरने पूछा कि आप लोग क्या चाहते हैं ? उन्होंने उत्तर दिया कि, आप अपने साथियोंकि साथ कहीं छायाका आश्रय लें । वस, इमको यही चाहिये ।' यह क्रिया दया दाक्षिण्यादि गुणयुक्त जैन साधुओंके उपयुक्त है। उन्होंने यूनानियों के लिये सूर्या ताप असहिष्णु समझन्नर शीतल प्रदेशके उपयोगमा उपदेश दिया प्रतीत होता है। (१०) श्रमणोंने कहा था कि 'इस परिभ्रमणना कभी अन्त होनेवाला नहीं। जब हमारी मृत्यु होगी तो इस शरीर और मात्माका जो अस्वाभाविक मिलन है, वह छूट नायगा। मृत्युके वाद हमें एक अच्छी गति प्राप्त होगी। यह मान्यतायें ठीक जैनोंके समान हैं। (११) "एकबार सिकन्दरने ध्यानमग्न दश साधुओंको बलाकारसे पकड़कर मंगा लिया था। साधुओंसे उसने दम प्रश्न किये और धमकी दी कि यदि इनका ठीक उत्तर नहीं होगा, तो हम सबको एक साथ मरवा देंगे । परन्तु साधुओं के संघनायकने बड़ी निर्मीकतासे सिकन्दरसे कहा था कि यद्यपि तुम्हारा शारीरिक और सैनिक बल हमसे बढ़ा चढ़ा है, किंतु आत्मिक बल तुम्हाग हमसे प्रबल नहीं होसक्ता । कहा जाता है कि ये नग्न साधु सिकन्दरके सिपा जैसि भा० मा० १ कि० २-३, पृ. ८ .२-पूर्ववत् । ३-ऐइ० पृ. ४५
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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