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________________ १८८] संक्षिप्त जैन इतिहास । यूनानी सभ्यताको ग्रहण नहीं किया था। सिकन्दरका भारतआक्रमण एक तेन आंधी थी; जो चटसे भारतके उत्तर-पश्चिमीय देशसे होती हुई निकल गई । उससे भारतका विशेष अहित भी नहीं हुमा था । यही कारण है कि भारतवासी सिकन्दरको शीघ्र ही भूल गये थे। किसी भी ब्राह्मण, जैन या बौद्धग्रंथमें इस माक्रमणका वर्णन नहीं मिलता है। किंतु इस आक्रमणका फल इतना अवश्य मानना पड़ेगा कि इसके द्वारा संसारकी दो सम्य और 'प्राचीन जातियों का सम्पर्क हुआ था। यूनानियोंने भारतवर्षके विद्वानोंसे बहुतसी बातें सीखी थीं और यहांके तत्वज्ञानका यूनानी 'दार्शनिकोंके विचारोंपर गहरा प्रभाव पड़ा था। सिकन्दर और उसके साथियों का विशेष संसर्ग दिगम्बर जैन मुनियोंसे हुआ था। परिणामतः यूनानियों में अनेक विद्वान् “भहिंसा परमो धर्मः" सिद्धांत पर जोर देनेको तुल पड़े थे। इन लोगोंने जो भारत एवं जैन मुनियों (Gymnosophists ) के सम्बन्धमे जो बातें लिखी हैं; 'उनका सामान्य दिग्दर्शन कर लेना समुचित है। भारतवर्षके विषयमें यूनानियोंने बहुत कुछ लिखा है, मगर खास ... जानने योग्य बात यह हैं कि वह उस समय भारतकी भारत वर्णन। जनसंख्या तमाम देशोंसे अधिक बताते हैं; नो अनेक संप्रदायोंमें विभक्त था और यहां विभिन्न भाषायें नोली जाती थीं। एक संपदाय ऐसा भी है कि न उप्तके अनुयायी किसी जीवित प्राणीको ___..!-पैथागोरस ऐसा ही उपदेश देता था (देखो ऐइ० पृ० ६५) • और पोरफेरियस ( Porphyrious ) ने मांस निषेध पर एक अन्य। लिखा था । (ऐइ० पृ० १६९) । २-ऐइ० पृ० १ । -
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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