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________________ भगवान महावीरका निर्वाणकाल। [१६७ पांचवें मतके अनुमार शकाव्दसे ७४१ वर्ष पहले वीर भगशादसे ७४१ वर्ष वानका निर्वाण हुआ प्रगट होता है । उस पूर्व भी भ्रांतमय है। मतका प्रतिपादन दक्षिण भारतके १८ वीं शताब्केि शिलालेखोंमें हुआ है । जैसे दीपनगुड़ीके मंदिरवाले बड़े शिलालेखमें इसका उल्लेख यूं है;" " वदमानमोक्षगताव्दे अष्टत्रिंशदधिपंचशतोत्तरहितहस्रपरिंगते शालिवाहनशककाले सप्तनवतिसप्तशतोत्तरसहस्रवर्यसमिते भवनाम सवत्सरे। इसमें शाका ११९७में वीर सं० २५५८ होना लिखा है। वर्तमान प्रचलित सं०से इसमें १३७ वर्षका अन्तर है। इस अन्तरका कारण त्रिलोकसारके ८५०३ नं०की गाथाकी टीका है, जैसे कि हम उपर बता चुके हैं। दक्षिण भारतके दिगम्बर जैन इतिहास ग्रन्थ 'रामा वलीकथे' से भी इसका समर्थन होता है । उसमें लिखा है कि 'महावीरनी मुक्त हुये तब कलियुगके २४३८ वर्ष बीते थे और विक्रमसे ६०५ वर्ष पूर्व वह मुक्त हुये थे ।२ उपरोक्त टीकाके कथनसे भ्रममें पड़कर ऐसा उल्लेख किया गया है और इस भ्रमात्मक मतको भला कैसे स्वीकार किया भासता है ? अंतिम मत है कि विक्रम जन्मसे ४७० वर्ष पहले महावीरअन्तिम मत स्वामीका निर्माण हुआ था। और इस मतके अनु मान्य है। सार ही आनकल जैनोंमें वीरनिर्वाण संवत प्रचलित है। यह संवत् ताजा ही चला हुआ नहीं है बल्कि प्राचीन साहित्यमें भी इसका उल्लेख मिलता है। किन्तु इसकी गणनामें पहलेसे 1-ममेप्राजैस्मा०, पृ० ९८-९९ । २-जनमित्र, वर्ष ५ अंक ११ पृ० ११-१२ । ३-डाका लिखे हुएके गुटकेमें इसका उल्लेख है। - -
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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