SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान महावीरका निर्वाणकाल। [161' णके उपरान्त हुमा मानें तो शायद किसी अंशमें ठीक भी हो; परन्तु उन्हें तबसे 461 वर्ष पश्चात हुआ मानकर शक संवत वतलाना प्रचलित शक संवतकी गणनासे बाधित है। इस दशा शक संक्त प्रवर्तकको ही जन ग्रन्थोंका शकराना मान लेना जाग कठिन है। इसके साथ ही शक संवत् प्रवतंकका ठीक पता भी नहीं चलता ! कोई कान द्वारा इस संवत्का प्रारम्भ हुमा बताते हैं, तो अन्योंका मत है कि नहपान अथवा चष्टनने इस संवतको चलाया था। किंतु ये सब आधु नेक विद्वानों के मत हैं और कोई भी निश्चयात्मक नहीं हैं। इसके प्रतिकूल प्राचीन मान्यता यह है कि शक संवत् शालिवाहन नामक राना द्वारा शकोंपर विनय पानेकी याददाश्तमें चलाया गया था। इस प्राचीन मान्यताको तुला देना उचित नहीं जंचता / रुद्रदामनके अन्धौवाले शिलालेखक माधारपर शक संवतको चलानेवाला गीतमो पुत्र शातकणी (शतवाहन या सालिवाहन) प्रगट होता है। गौतमी पुत्रने अपने विषयमें स्पष्ट कहा है कि उसने शकों, पलवों और यवनों एवं क्षहरातवंशको जड़मूलसे नष्ट करके सातवाहन वंशका पुनरुद्धार किया था। किंतु कोई विद्वान इसे सन् 120 के लगभग हुमा बताते हैं और इस समय उसका नहपानसे . युद्ध करके विनयोपलक्षम सवत चलाना ठीक नहीं बैठता क्योंकि शकसंवत सन 78 ई. से प्राम होता है / इसी कारण सातवाहन वंशके हालनामक रानाको इस संवतका प्रवर्तक कहा जाता है। किंतु अब उपरोक्त अन्धौवाले शिलालेखसे नहपानका समय १-जमीयो०, मा० 17, पृ०:३३४ 1 २-जमीसो०, मा० 15 पृ० 335-336 // --
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy