SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५०] संक्षिप्त जैन इतिहास । निग्रह करनेसे नहीं चूकते थे । राजाओंका तो यह कर्तव्य ही था; किंतु वणिक लोग भी शस्त्रविद्यामें निपुण होते थे और वक्त पड़नेपर उससे काम लेना जानते थे।' प्रीतिकरने भीमदेव नामक विद्याधरको परास्त करके राजकन्याकी रक्षा की थी। सचमुच उस समयके पुरुष पुरुषार्थी थे और उनके शिल्प कार्य भी अनूठे होते थे। सातर मंजिलके मकान बनते थे और उनकी कारीगरी देखते ही बनती थी। सोनेके रथ और अम्बारियां दर्शनीय थे। उनके घोड़े और हाथियों की सेना जिस समय सजघनके निकलती थी, तो देवेन्द्रका दल फीका पड़ा नजर पड़ता था। उस समयके चत्य और मूर्तियां अद्भुत होती थीं । उनके एकाध नमूने आज भी देखनेको मिलते हैं। लोग बड़े पुरुषार्थी, दानी और धर्मात्मा थे। सारांशतः उस समयकी सामाजिक स्थिति आजसे कहीं ज्यादा अच्छी और उदार थी। . ___ उस उदार सामाजिक स्थितिमें रहते हुये, भारतीय अपनी धार्मिक स्थिति। ... धार्मिक प्रवृत्तिमें भी उत्कृष्टताको पाचुके थे। जिस समय भगवान महावीरजीका जन्म भी नहीं था, उसके पहिलेसे ही यहां वैदिक क्रियाकाण्डकी बाहुल्यता थी । धर्मके नामपर निर्मुक और निरपराध जीवोंकी हत्या करके यज्ञ-वैदियां रक्तरंजित की जाती थीं। कल्पित स्वर्गसुखके लाल चमें इतर समान ब्राह्मणोंके हाथकी कठपुतली बन रहा था। उन्हें न बोलनेकी स्वाधीनता थी और न ज्ञान काम करनेकी खुली माज्ञा ! -जैप्र० पृ० २२९ । २-भमे० पृ० ५८ ॥ 3-उपु० पृ० ७५० । ४-मम० पृ० ५२-५६ ।
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy