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________________ श्री वीर संघ और अन्य राजा। [१२७ श्री सुधर्माचार्य पांचवे गणधर थे। इन्द्रभूति गौतमके पश्चात मर्माचार्य और इन्होंने ही वीरसंघका नेतृत्व बारह वर्षजैनधर्म प्रचार। तक ग्रहण किया था। इनके द्वारा जैन धर्मका प्रभाव खुब ही दिगन्तव्यापी हुआ था। जिस समय इन्द्रमृति गौतमको निर्वाणलाम हुआ था, उप समय इनको केवलज्ञानकी विभूति मिली थी और जम्बूकुमार (मन्तिम केवली) श्रुतकेवलज्ञान प्राप्त हुआ था। सुधर्म स्वामो भी ब्राह्मण वर्णके थे। इनका गोत्र अग्निवैश्यायन था। इनके गोत्रकी अपेक्षा ही बौद्धोंने महावीरजीका उल्लेख 'मग्निवैश्यायन' रूपमें किया है। इस उल्लेखसे यह स्पष्ट है कि वीर संघमें यह एक बड़े प्रभावशाली और प्रसिद्ध नेता थे। यह 'लोहार्य' नामसे भी विख्यात थे * इनका जन्म स्थान कोल्लाग सनिवेश था और इनके माता-पिताका नाम क्रमशः धम्मिल और भद्रिला था। इनको आयु सौ वर्षकी थी । मुनि जीवनमें इन्होंने सारे भारतवर्ष विहार किया था। पुंडूवईनमें (बङ्गालमें) इनका विहार और धर्मप्रचार विशेष रूपमें हुआ था। __उदेशके धर्मनगरमें उस समय गना यम राज्य करता था। उडदेशका राजा यम उसकी धनवती नामक रानीके उदरसे मुनि हुआ था। कोणिका नामकी एक अन्या और गईम नामक एक पुत्र था । अन्य रानियोंसे इस रानाके ५०० पुत्र और थे। श्री सुधर्माचार्यका संघ इस गनाकी राजधानीमें पहुंचा । पहले तो इसने मुनिसंघकी अवज्ञा के'; किंतु हठात् यह प्रतिबुद्ध हो १-उपु० प्र० ७४४ । २-ममबु. पृ० २३ । * जैसा सं० भा० १.१०.१४८ ! ३-वृजेश पृ० ५। ४-वीर वपं. ३ पृ. ३७० । -
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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