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________________ ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर। [११३ AAAA ग्रन्थोंमें बहुत कुछ बौद्धोंके पिटश्चयके ही समान और सम्भवतः उनका उद्धरण है। डॉ. जैकोबीने भी बौद्धोंके उपर्युक्त चातुर्याम संवर नियमको भगवान पार्श्वनाथका चातुवंत नियम प्रगट किया है। जैसे कि श्वेतांबर बतलाते हैं; किन्तु उनकी यह मान्यता निराधार है। अतएव यह उचित नंचता है कि भगवान पार्धनाथनी और महावीरगीके वर्मों में सामायिक और छेदोपस्थापना (पंच महाव्रत) रूप प्रधानताको पाझर, श्वेतांबरोंने पार्श्वनाथनी के धर्ममें चार व्रत और महावीर भगवानके धर्ममें पंचमहावतों का होना प्रगट कर दिया। वैसे यथार्थमें दोनों ही तीर्थंकरों के धर्मोमें व्रत पांच ही माने गये थे। यही हाल नग्नताके विषयमें है। भगवान पार्श्वनाथनीको अथवा उनके तीर्थके मुनियों को वस्त्र धारण करते हुए बतलाना निराधार है। बौद्ध ग्रन्थोंखे यह सिद्ध है कि पार्श्वनाथ नीके तीर्थक साधु नग्न रहते थे । और मुनि भेषका नग्न होना प्रारूत समुचित है; जैसे कि पहिले प्रगट किया जाचुका है और जिससे श्वेतांवर शास्त्र भी सहमत हैं । अतएव यह कहना कि भगवान महावीरने नग्नताका प्रचार किया, कुछ भी महत्व नहीं रखता। किन्हीं विद्वानों का यह स्वयाल है कि पार्श्वनाथ नीके धर्ममें तात्विक सिद्धांत पूर्णतः निर्दिष्ट नहीं थे। किन्तु यह खयाल गैन मान्यताके विरुद्ध है। जैन स्पष्ट कहते हैं कि भगवान पार्श्वनाथ के धर्ममें भी वैसे ही तत्त्व 1-Js. Pt., Intro. p. 23. २-भमबु० पृ. २२४ । ३-भमबु० पृ० २३६-२३७ । ४-हिप्रिइफि० पृ. ३९६...... -
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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