SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर। [१०१ - जनधर्मकी महिमा अधिक थी। (आऋ० भा० २४० ४४) सिंधुदेश, बिहार और धर्मप्रचार करते हुये भगवानका शुभा; पंजार और माश्मीरमें गमन पंजाब और काश्मीरमें भी हुआ था। वीर-सन्देशका गांधारदेशकी राजधानी तक्षशिलामें भगवा: प्रतिचाप । नका समोशरण खूब ही शोभा पाता था। नाम भी बहाएर कई भान जैन स्तुप मौजूद हैं। (तक्ष०, १०७२) वहीं निकटमें कोटेरा ग्रामके पास भगवान के शुभागमनको सुचित करनेवाला एक वंश नैनमंदिर अब भी विद्यमान है । जैनधर्मकी बाहुल्यता यहां खूब होगई थी। यही कारण है कि सिकन्दर महानको यहांपर दिगंबर जैन मुनि एक बड़ी संख्या मिले थे। ___फलतः भगवान महावीरनीका विहार समग्र भारतमें हुमा समन भारतमें वीरप्रभा था। ई०से पूर्व चौथी शताब्दी में जैन धर्मचक्र प्रवर्तन। धर्म लंका भी पहुंच गया था। मतएव इस समयसे पहिले जैनधर्म दक्षिण भारतमें आ गया था, यह प्रगट होता है । जनशास्त्र कहते हैं कि भगवान महावीरका समोशरण दक्षिण प्रान्तके विविध स्थानोंमें पहुंचा था। आज भी कितने ही अतिशयक्षेत्र इस व्याख्याका प्रकट समर्थन करते हैं। श्री जिनसेनाचार्यनीके कथनसे भगवानका समग्र भारत किंवा अन्य मार्य देशोंमें विहार करना प्रगट है। वह लिखते हैं कि "निसप्रकार मव्यवत्सल भगवान ऋषभदेवने पहिले अनेक देशोंमें विहार कर उन्हें धर्मात्मा बनाया था, उसीपकार भगवान महावीरने भी मध्यके (काशी, कौशल, कौशल्य, कुसंध्य, अश्वष्ट, सारव, त्रिगत . .. -जाद पृ० ६८२-६८३ । २-लाम० पृ. २०॥
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy