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________________ ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर। [९९ ठीक उस समय निर्वाणलाम किया था, जिस समय भगवान महावीर पावामें मुक्त हुए थे। जैनशास्त्रों में इन्हें एक बड़ा प्रतापी राजा लिखा है। इनने दक्षिणके पल्ला मादि देशोंके रानाओं एवं उत्तरा पथके राजाओंसे भी युद्ध किया था। (उपु० ए० ६५१-६९७) जैन कवियोंने इनके विषयमें अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। दक्षिण भारतमें विचरते हए भगवानका समोशरण उज्जैन के निकट स्थित सुरम्य. देशकी पोदनपुर नामक राजधानी में पहुंचा था। उस समय यहाँका राजा विद्वान जैनधर्म भक्त था। पोदनपुरसे वीर प्रमूका समोशरण मालवा और राजपूतानाकी राजपूतानामें श्रीमहा- ओर आया था। जयपुर राज्यान्तर्गत महा वीरका विहार । वीर ( पटौंदा ) स्थान भगवानकी पुनीति पावन स्मृतिका वहां थान भी प्रगट चिन्ह है। उज्जैनमें उस समय राजा चन्द्रप्रद्योत राज्याधिकारी थे और वह जैनधर्मके प्रेमी थे। उनने कालसंदीव नामक उपाध्यायसे म्लेच्छ भाषा सीखी थी। कालसंदीव जैन मुनि हुए थे और अपने शिष्य स्वेतसंदीव सहित वीरसंघमें संमिलित होगये थे । ( माक० भा० ३१० ११०) भगवान महावीरके निर्वाण समय चन्द्रप्रद्योतका पुत्र “ पालक" राज्य सिंहासनपर बैठा था । राना प्रधोतन जैन मुनि होगये थे। 'उज्जैनके समीपमें ही दशार्ण देश था। इस समय वहाँके राना" दशरथ भगवान के निकट सम्बन्धी थे; यह पहले लिखा जाचुका है। उनके राज्यके निकट जब वीरप्रभु पहुंचे थे, तो यह सम्भव नहीं कि १-जैप्र० पृ० २२१ । २-आक० भ.० ३ पृ०:५। ३-हरिः पृ० १२ (भूमिका)। - -
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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