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________________ बारह भावना ( भूधादाम ) गजा गगगा पति, हाथिन के अमबार । मग्ना मबको एक दिन, अपनी-अपनी बार ।। दलवा देई देखना, मान-पिना परिवार । मरनी बिग्यिा जीव को. कोई न राग्यनहार ।। । ) दाम विना निधन दुग्य'. नगणावा नवान । कर न सग्य ममार म. मब जरा देर यो छान ।। पाप अकली अवन, मरे अंकली होय । य कबह टम जीव का, माथी मगा न कोय ।। जहा देह अपनी नहीं. नहा न अपना काय । घर सम्पति पर प्रगट ये, पर हैं परिजन लोय ।। (६) दिपै चाम चादर मदी. हाड़ पी जग देह । भीनर या मम जगत में अवर नहीं घिन गेह ।।
SR No.010470
Book TitleSankshipta Jain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaiya Bhagwandas
PublisherBhaiya Bhagwandas
Publication Year
Total Pages69
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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