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________________ पश में करने के लिये नैधिक भावक के हतों को पूर्ण श्रद्धा से ज्ञानपूर्वक प्रापरण करनेवाले मध्यम अन्तरामा हैं। इनकी पारमा में भारमा का अनुभव तो हो ही जाता है पर अपनी मनानि कालोन पादत से लाचार होकर प्रात्मा के शुद्ध अनुभव करने में असमर्थ है, एवं दोनों प्रकार के परिप्रहों को सर्वथा बोरने में भी असमर्थ है, इसलिये गृहस्थ जीवन में रहकर जितना से सकता है, कम परिग्रह रखते हैं और पंचेन्द्रियों के विषयों की, अपने माने-जानेवाले क्षेत्र की, धन-धान्य, दाम-दामी मादि की अपनी सुविधानुसार मर्यादा कर लेते हैं और धीरेधारे अपनी शक्ति को बढ़ाकर अपने संयम को बढ़ाते चले जाते है। अपने उपयोग और पाचार को खराब नहीं होने देते। इम तरह अपनी इन्द्रियादि के निग्रह से पाम स्वरूप को विका मित कर कर्मों के रद बन्धन को ढीला करने का मतत प्रयास करते हैं। जघन्य अन्तरात्मा-"अपन कहे अविरत समष्टि, तीनों शिव मग पारी"-जिनकी पारमा ने अपने स्वरुप का अनुभव नो पर लिया है पर अनादि-कालीन धर्म के प्रभाव से साधारण प्राचार पालने में भी असमर्थ हैं। वे जीव यह तो पूर्णतया जानते हैं कि जब तक में अपनी इन्द्रियों और मन को मामारिक विषयों से न हटाउंगा. तब तक मुझे वास्तविक शान्ति न मिलगी और उनी यही सपा विश्वास है पर वे मोहनीय जामा कम के दबाव में भाकर यूनादि करने में सबंधा अममर्थ हैं। इलिये ही उनका नाम जघन्य अन्तरात्मा या अविरत सम्यग्रटो है। ये तीनों-उत्तम, मध्यम, जपन्यअन्नगामा मोक्ष मार्ग में लगे हुए हैं। क्योंकि मनको मारमा असली रूप का अनुभव हो गया है।
SR No.010470
Book TitleSankshipta Jain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaiya Bhagwandas
PublisherBhaiya Bhagwandas
Publication Year
Total Pages69
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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