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________________ है उसे किमो ने बनाया नहीं। ईश्वर की तरह प्रात्मा भो अनादि है और जब आत्मा अनादि है, तो उसका धर्म आदि कैसे हो मकता है । क्योंकि प्रात्मा धर्मी है और चेतन्य उमका धर्म है। जैम अग्नि धर्मी है और उष्णता उसका धर्म है। अग्नि में उष्णता कब किमने लाकर दा ? चाँदी में श्वेत रूप किसने भर दिया, जिस तरह उजेला या प्रकाश अनादि है, उसी प्रकार अन्धकार मी अनादि है। इसी प्रकार संसार में जितने पदार्थ आप देख रहे हैं. वे और उनमें रहनेवाले मभी गुण या धर्म भी अनादि स हैं। हाँ, यह बात ना अवश्य है कि जिन दव्यों में में जो-जो गुणधम हैं, उनका ज्ञान मभी मनुष्यों का प्राणियों को नहीं होना । इमलिये उन गुणधर्म के जानकार उन द्रव्यो का स्वरूप उम विषय के अजानकारों को समझाते हैं। पर इमका यह मतलब कभी नहीं होता कि उम विशंपन्न ने उन पदार्थों में गुण धर्म पटा कर दिया है। क्योंकि मभी द्रव्य और गुणधर्म अनादि हैं और अनादि में ही इनके जानकार संमार में मौज़द हैं। इमलिये यह कैम माना जाय कि जैनधर्म का प्राय स्थापक अमुक महपि था महात्मा है । जबकि जैन धर्म श्राम धर्म है, जिमका स्पष्ट अथ होना है वस्तुओं में रहनेवाले गुण-धर्मों का ज्ञान कराने वाला धम', नब यह बात निस्मन्दह मिद्ध हो जाती है कि इस धर्म का प्राय पूकाशक भी अनादि कालीन है, पर स्थापक कोई नहीं है। हाँ, यह बात ना अवश्य है कि ममय-समय पर जिन आपामाओं ने अपना पूर्ण विकास कर लिया और मर्वज्ञता पाकर जिन या अरहन्त हो गए, वे हो अपने समय के पकाशक कहलाए अर्थात् उन्होंने जैन-धर्म का अनादि सिद्धान्त दुनिया के सामने रक्खा। इस तरह के महापुरुषों में जो विशेष प्रतिभा सम्पन्न हुए वे तीर्थ कहलाये ।
SR No.010470
Book TitleSankshipta Jain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaiya Bhagwandas
PublisherBhaiya Bhagwandas
Publication Year
Total Pages69
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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