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________________ ( 30 ) 'हे जीवो' यदि तुमको अब भी भवभ्रम की विडंबना का मयाब हुआ हो, तो अब भी मोजो कि इसके कारण क्या-क्या हैं ? इसको समझो तुम अनादिकाल में राग शक्श होकर दुष्कर्म करते रहे हो। अनन्नासाथ हिंसा बैर. विरोध चोदgeकर्म करते रहे हो उसी का यह फल है चोगम लक्ष व योनियों में अनन्तराल से जन्म-मरगा कर रहे - अब भी हम लोग मुक्ति नही पान कर मो | मनुष्ययोनि में आकर भी यदि हम सबको विचार होता है, तो आज जीवन के लक्ष का परिवर्तन करना होगा। गग कोयाग कर समस्थिति का उपासक होकर मय्य अहिमामय जीवन में स्थित रहकर नश लाक्षणिक अमधक उपासना मेचि रहना होनमा अनन्तकालीन सांसारिक भव विडंबना परिसमाप्ति होगी फिर क्यों हम लोग पाद में है । अत गतकाल के अनन्त भवन्रम में बने. अनन्त अपराधों क समन सामगा कर चोरामा लक्ष जीव योनियों के जाबो के साथ मंत्री भाव स्थापन करना आवश्यक 8 आज से जनमान के साथ द्रोह न कर पूर्ति दिन सविवेक के साथ, मंत्री भावपूर्वक परोपकार गुति से वर्तना उचित है। इस पवित्र तथा जन शिक्षा ने मनुष्यों की बिवेकी, विनयवान बनाया, विषय कपायों में मुक किया। उनकी दाना, शात्रवन, मगमी, पी एवं भावनामय जालान बनाया. जिसका परिणाम यह आया कि चराचर जगत में शान्ति का साम्रज्य स्थापित हुआ इसी विश्व प्रकृति जायां को अनुकूल मुम्बई यही जैनधर्म feer आरमधर्म का यथार्थ पालन का फल है. यहां जनदर्शन का मक्षिप्त रूपया है। है। जैनधर्म सिद्धांत का उपासक है, व्यक्तियों का नहीं । धर्म -
SR No.010470
Book TitleSankshipta Jain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaiya Bhagwandas
PublisherBhaiya Bhagwandas
Publication Year
Total Pages69
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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