SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २५ ) आत्म-ध्यान का उपाय आत्म-ध्यान करना कोई कठिन काम नहीं है-इसके लिये सब से जियादा आवश्यक बात यह है कि मन को ध्यान के समय राग, द्वेष मोह से हटाया जावे । संसार के सब पदार्थों से मोह छोड़ दिया जावे, नकिसी से राग किया जाये न द्वेष । उस समय यह समझे"हम न किसी के कोई न हमारा, झूठा है जग का व्यवहारा" अपने शरीर से भी ममता हटा ली जावे, मात्र अपना लक्ष्य आत्मा के स्वरूप पर रक्खा जावे जिसको निश्चयनय से जाना है व जिसकी ओर मचि पैदा की है । यह नियम जिधर रुचि होती है उधर मन अपने आप चला जाता है । श्रीपूज्यपाद स्वामी समाधि-शतक में कहते हैं:-- यत्रैवाहितधीः पुंसः श्रद्धा तत्रैव जायते । यत्रैव जायते श्रद्धा चित्ततत्रैव लीयते ॥५॥ __ भावार्थ-जिस किसी वस्तु को यह आत्मा बुद्धि से समझ लेता उसी में ही इसकी रुचि पैदा हो जाती है। जिस किसी में रुचि हो जाती है वहीं चित्त लय हो जायला रुचि पैदा करने के लिये सच्चे सुख शांति काम आवश्यक है तथा आत्मा के सच्चे स्वभाव का विश्वास होना चाहिये तशी को अब ध्यान करना हो तब अपने शरीर में ही ज्यामानित जल के समान शुद्ध प्रात्मा को देखे । 'शुद्ध स्वरूपोह इस वाक्य को कहता रहे व
SR No.010469
Book TitleSanatan Jain Mat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherPremchand Jain Delhi
Publication Year1927
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy