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________________ इसका जवाई यही है कि इसको सुख और शांति चाहिये, उसको मिलने का मार्ग इस भज्ञानी को दूसरा कोई दिखसा नहीं । यह यही समके हुए हैं कि विषय भोग से ही सुख शांति मिलती है। इसका ऐसा समझना बिलकुल असत्य नहीं है । जिस समय विषय भोग होता है पिछली इच्छा मिटने से कुछ सुख शांति झलकती है; 'परन्तु यह बहुत थोड़ी देर रहती है और बुराई यह है कि तुर्त भौर इच्छा पैदा हो जाती है जिससे अशांति और असंतोष बढ़ जाता है। इस विषय भोग से स्थिर सुख शांति मिलना व अशांति, दुःख व असंतोष का मिटना सर्वथा ही असंभव है-यह बात अनुभव सेहर एक प्राणी समझ सकता है। इसलिये यह उपाय सपा नहीं है जिससे इच्छात्रों का रोग मिटे । यह तो ऐसा ही है जैसा किसी कवि ने कहा है मर्ज बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की। हमें ऐसा उपाय ढूँढ़ना चाहिये जिससे हमें स्थिर सुख शांति . :मिले और इच्छात्रों का रोग मिट जावे । सच्चे सुख का उपाय अपने में हो है • सुख शांति वास्तव में आत्मा का स्वभाव है । अपने ही भीतर सुख शांति पूर्ण भरी हुई है। इस बात को हम थोड़ा भी विचार करें तो तुर्त समझ सकते हैं। शांति का नाश क्रोधादि विकारों से
SR No.010469
Book TitleSanatan Jain Mat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherPremchand Jain Delhi
Publication Year1927
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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