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________________ मार्ग एक या अनेक ? प्राप्त की जासकती है। ३. काल-महाविदेह मे तो किसी भी काल मे मक्ति हो सकती है, किंतु भरत एरवत के अवसपिणि काल के चौथे पारे मे और पाँचवे पारे के प्रारम्भ के कुछ काल में तथा उत्सपिणि काल के ३-४ बारे मे सिद्ध होते हैं । ४ भाव-क्षायिक भाव से सिद्ध होते है । यो तो मुक्त जीवो मे वस्तुन पारिणामिक भाव ही होता है, किंतु सिद्ध होते समय क्षायिक भाव होता है । इससे वे कर्मों को क्षय करते हैं और नये कर्मों का वंध नही करते । इसलिए उपचार से सिद्धो मे क्षायिक भाव-माना गया है। उदय, उपशम अथवा क्षयोपशम भाव मे रहने वाले सिद्ध नही हो सकते। मोक्ष मे जाने का परम्परा कारण क्षायोपशमिक भाव है और अनन्तर कारण क्षायिक भाव है। ५ भव-एक मात्र मनुष्य भव ही मुक्ति के योग्य है। देव, नारक और तिर्यञ्च भव इसके योग्य नही है। ६ जाति-पंचेन्द्रिय जाति ही से अनिन्द्रिय होकर मुक्ति लाम की जा सकती है, एकेद्रिय से चौरेन्द्रिय जाति से नही । ऊँच, नीच और मध्यम ऐसे सभी कुलो मे से सिद्ध हो सकते हैं। ७लिंग-पुरुष, स्त्री और नपुसक लिंग से,अवेदी अवस्था प्राप्त कर सिद्ध हो सकते हैं। ८ वय-बाल, युवक, प्रौढ और वृद्ध वय से सिद्ध हो सकते है। ६ वेश-गृहस्थ वेश, अन्यतीर्थी वेश और मुनि वेश से भी सिद्ध हो सकते हैं। राजमार्ग तो मुनि वेश से सिद्ध होने का है।
SR No.010468
Book TitleSamyaktva Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1966
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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