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________________ +SDes स्व-पर विवेक २४७ ne.................................me.harmes अपनी रक्षा करने योग्य नही माना जाता । इसका यही कारण है कि युवक की शक्ति कुछ विकसित है, तब बालक की शक्ति अवरुद्ध है-बद्ध है। उसका विकास नही हो पाया है । वह युवक की अपेक्षा विशेष बन्दी है। संसार के सभी प्राणियो मे गति, स्थिति, इन्द्रियादि सबधी जो विविधता दिखाई देती है, वह बन्धनावस्था ही के कारण है । मुक्त जीवो मे कोई भेद नही रहता । सभी मुक्तात्माओ की शक्ति, ज्ञान, सुख आदि समान है । भेद संसारियो मे ही रहा हुआ है । एक केवलज्ञानी पाँच सौ धनुष्य जितना दीर्घ शरीरी है, तो दूसरा दो हाथ से भी कम लम्बा । एक लगभग करोड पूर्व तक मनुष्य शरीर मे रहता है, तो दूसरा केवल प्राप्ति के कुछ देर बाद ही निर्वाण प्राप्त कर लेता है। एक के अतिशयो की ऋद्धि है और विशाल शिष्य-परिवार है, तो दूसरा माथे पर प्राग का भीषण उपसर्ग सहता हुआ एकाकी अवस्था मे देह त्यागता है । एक गुरु है, तो दूसरा शिष्य है। जब कि इनके सभी के केवलज्ञानादि अात्मिक गुण समान हैं, किंचित् भी अन्तर नहीं है । इससे सिद्ध हो जाता है कि संसारी जीव, जड के संयोग से संबधित है, बन्दी है और इसी से यह विविधता है। ___ यह तो प्रत्यक्ष सिद्ध है कि हमारी आत्मा, संयोग-संबंध मे बंधी हुई है । अतएव प्रात्मा को सर्वथा मुक्त-एकात मुक्त, कहने वालो की बात असत्य है । संयोग-सम्बन्ध मे बधे हुए होकर भी अपने-आप को मुक्त कहने वालो की बात सत्य
SR No.010468
Book TitleSamyaktva Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1966
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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