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________________ सम्यगदृष्टि का निर्णय २४१ NO.........................con.a.o.m...com और कुप्रचारको के चक्कर मे नही आकर जिनेश्वर भगवंतो के वचनो पर पूर्ण विश्वास रखे। अपनी श्रद्धा की सुरक्षा ही ससार से पार उतारने वाली प्रथम शक्ति है। परम दुर्लभ ऐसी सुश्रद्धा को पाकर जो उसे सुरक्षित रखता हुआ आगे बढेगा, वह अवश्य मुक्ति लाभ करेगा। सम्यग्दृष्टि का निर्णय कोई कहते हैं कि-'मनुष्य अपनी दृष्टि का निर्णय स्वयं कर सकता है । “मैं सम्यग्दृष्टि हूं या मिथ्यादृष्टि," इस विषय का निर्णय आत्मा अपने आप कर सकती है। उसे किसी दूसरे के निर्णय की आवश्यकता नही रहती' इस प्रकार दृढतापूर्वक प्राग्रह के साथ कथन किया जाता है। इन पंक्तियो मे इसी पर विचार किया जाता है । हम अपने आप मे सम्यक्त्व होने का निर्णय कर सकते है, अवश्य कर सकते है, किंतु किसी प्रामाणिक आधार-कसौटी के बल पर ही । बिना किसी आधार या अशुद्ध प्राधार से, अपनेआप किया हुआ निर्णय गलत भी हो सकता है। प्रामाणिक कसौटी पर कस कर किया हुआ निर्णय भी गलत हो सकता है, तो बिना किसी आधार के निश्चित्त किये हुए विचार का तथ्यहीन सिद्ध हो जाना असंभव नही है । व्यवहार मे भी हम देखते और अनुभव करते है कि जिन रोगो को हम साधारण और सुसाध्य मानते हैं, वे दु.साध्य अथवा असाध्य सिद्ध होते है। तपेदिक ग्रादि रोगो मे डॉक्टर का निदान सुनकर कितने
SR No.010468
Book TitleSamyaktva Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1966
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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