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________________ २३८ सम्यक्त्व विमर्श दिया गया ? ज्ञान, चारित्र और तप से भी सम्यक्त्व को अत्यधिक महत्व देने का कारण क्या है ? 'प्रश्न ठीक है। समाधान मे कहा जाता है-किसी भी कार्य मे प्रवृत्ति करने के पूर्व उसके उद्देश्य, नियम तथा परिणाम को समझ लेना आवश्यक है। बिना सोचे-समझे किया हुया प्रयत्न बेकार जाता है और दु खदायक भी हो जाता है। आँखो पर पट्टी बांध कर चलने वाला या अन्धा व्यक्ति, गलत दिशा मे चलकर इच्छित स्थान से दूर भी चला जाता है, और कएँ या खड्डे मे गिरकर जान से हाथ भी धो लेता है। यदि उसकी ऑखो की पट्टी खुल जाय या नैत्र की ज्योति प्राप्त कर ले, तो वह खाई खड्डे से बचकर निश्चित्त स्थान पर पहुँच सकता है। एक बाई, यदि बिना सोचे समझे भोजन की सामग्री का उपयोग करे और हलवे मे नमक मिर्च और मसाले मिला दे, तथा दाल शाक मे शक्कर आदि डाल दे, तो वह परिश्रम करते हए और मूल्यवान सामग्री लगाते हुए भी विफल तथा निन्दा की पात्र हागी। एक निशाने बाज, पूरी शक्ति और बढिया साधनो से निशाना लगावे, किंतु उसकी दृष्टि सधी हुई नही है, तो वह निशाना नही वेध सकेगा। उसका निशाना चूक जायगा और उसका प्रयत्न वेकार हो जायगा। दो भखे चहे, भोजन की तलास मे निकले। उन्हे मिठाई की सुगन्ध आगई थी। उस घर में एक सँपेरा ठहरा
SR No.010468
Book TitleSamyaktva Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1966
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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