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________________ अक्रिया मिथ्यात्व २०५ करता। शरीर से सम्बन्धित आत्मा, वैभाविक दशा मे रहा हुआ है । उस पर उदय-भाव का असर रहता है । इस उदयभाव के अनुसार वह विभिन्न सयोगो और परिणामो का संवे. दन करता हुआ, परिणाम के अनुसार कर्ता बनता है, इसलिए वह सक्रिय है। स्थानागसूत्र १० तथा प्रज्ञापना १३ मे दस प्रकार का 'जीव परिणाम' बताया है। यथा १ गति परिणाम-गमन करना, एक गति से दूसरी गति मे जाना। २ इद्रिय परिणाम-श्रोत आदि इंद्रिय का धारण करना। ३ कषाय परिणाम-क्रोधादि कषाय युक्त रहना । ४ लेश्या परिणाम-कृष्णादि लेश्या सहित । ५ योग परिणाम-मन वचन और काय योग युक्त । ६ उपयोग परिणाम-ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग युक्त। ७ ज्ञान परिणाम-सम्यग्ज्ञान या अज्ञान युक्त होना । ८ दर्शन परिणाम-सम्यग, मिथ्या या मिश्र-दर्शन युक्त होना। ६ चारित्र परिणाम-देश चारित्र या सर्व चारित्र युक्त अथवा सामायिकादि चारित्र युक्त होना । १० वेद परिणाम-पुरुषादि वेद युक्त होना । संसारी जीवो के ये दस परिणाम है । जो मुक्ति प्राप्त कर प्रसंसारी हो चुके हैं, उनके-१ उपयोग, २ ज्ञान और ३ दर्शन परिणाम होता है, गति, इन्द्रिय आदि ७ परिणाम उनमे नही
SR No.010468
Book TitleSamyaktva Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1966
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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