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________________ असाधु को साधु मानना ............................ ............. हुए भी असाधुता के कार्य करते थे। उनकी असाधता का वर्णन श्रीहरीभद्रसूरिजी ने 'सबोधप्रकरण' मे इस प्रकार किया है, “ये साधु नामधारी लोग, चैत्यो और मठो मे रहते हैं, पूजा करने का प्रारम्भ करते हैं, अपने लिये देवद्रव्य का उपयोग करते हैं, जैनमदिर और शाला बनवाते हैं, मुहूर्त बतलाते है, ज्योतिष निमित्त बतलाते है, भभूति डालते है, विविध रंग के सुगंधित तथा धूप से सुवासित किये हुए वस्त्र पहनते हैं, स्त्रियो के समक्ष गाते हैं, साध्वियो का लाया हुआ आहारादि लेते है, तीर्थ के पण्डो की तरह धन का संचय करते हैं, दिन मे दो और तीन वार खाते हैं, ताम्बूलादि खाते हैं, घृत-दुग्धादि स्निग्ध पदार्थों के प्रेमी हैं, फल खाते और सचित्त पानी पीते हैं, सामहिक भोजनो (जीमणवार) के प्रसंग के मिष्ठान्न लेते हैं, आहार के लिए खुशामद करते हैं और यदि कोई सत्य-धर्म के विषय मे पूछे तो नही बतलाते है।" आदि "सूर्योदय होते ही उनका खानपान प्रारम्भ हो जाता है, वे बारबार खाते हैं, लोच नही करते हैं, शरीर का मेल दूर करते हैं, भिक्षु की प्रतिमा को धारण करते हुए शरमाते हैं, पावो मे पहनने के लिए जूते रखते हैं, स्वत. भ्रष्ट होते हुए दूसरो को आलोचना करवाते है प्रतिलेखना नही करते है,वस्त्र, शय्या, उपानह, वाहन, आयुध और ताम्र आदि के पत्र रखते है, स्नान करते हैं. तेल की मालीश करते हैं, शृंगार सजते हैं, इत्र फुलेल लगाते हैं । 'अमुक गाँव मेरा, अमुक कुल मेरा'-इस प्रकार ममत्व भाव रखते हैं। स्त्रियो से प्रति परिचय रखते हैं। वे
SR No.010468
Book TitleSamyaktva Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1966
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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