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________________ १०२ सम्यक्त्व दिमर्श मीय २१ वी शताब्दी के प्रारंभ मे ऐसे सत्वहीन स्था० जैनी हुए कि श्रद्धाभ्रष्टो के द्वारा बिगडते हुए समाज को नही रोक सके-'चू' तक नही कर सके। परपाखण्डियो की सगति से सभी खतरे पैदा हो सकते है । जिनधर्म के प्रति शंका होती है, परदर्शन को ग्रहण करने की इच्छा होती है, करणी के फल मे सदेह होता है। ये सभी खतरे "परपाखड-परिचय" से उत्पन्न होकर जीव को सम्यक्त्व से भ्रष्ट कर देते हैं । इसलिए इन खतरो से सावधान रहकर बचते रहना अति आवश्यक है। ____ अंबड जैसा पक्का श्रावक-जो पहले परपाखंडी था, भगवान् का उपदेश सुनकर दृढ सम्यक्त्वी हो गया था। उसके ७०० शिष्य भी जिनधर्मी हो चुके थे। ऐसा प्रकाण्ड विद्वान् और विशिष्ठ शक्ति सम्पन्न अंबड श्रावक (सन्यासी) भी परपाखड से दूर रहने के लिए प्रभु के सामने प्रतिज्ञा करता है। सयती राजऋषीश्वर को क्षत्रीय राजऋषीश्वर, प्रथम मिलन मे ही पाखंड से बचे रहने की बात पूछते हैं । तर्क-बल से भले ही कोई इस बात को झुठलाने का व्यर्थ प्रयत्न करे, परतु परपाखंड परिचय के दुष्परिणाम से इन्कार नही किया जा सकता। __श्री जिनवचनो पर श्रद्धा रखना और आगम निर्दिष्ट खतरो से दूर रहना, प्रत्येक धर्म प्रेमी के लिए अत्यावश्यक है। मिथ्यात्व 'सम्यक्त्व'--यह ऐसा विषय है कि जिसे समझने के
SR No.010468
Book TitleSamyaktva Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1966
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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