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________________ सम्यक्त्व विमर्श योग नहीं कर आनंद शकादि तीन दोषो के लिए प्रकट रूप से कुछ नही बोलता, कित पिछले दो दोषो के लिए जाहिर मे प्रतिज्ञा करता है। इसका कारण यही है कि शकादि प्रथम के तीन दोष तो हृदय से ही सम्बन्ध रखते है, किंतु पिछले दो दोष,प्रकट रूप से दूसरो से ही सबध रखते है । यदि स्वयं दृढ हो और उन पर परपाषड के परिचय का कोई प्रभाव नही पडे, तो भी उसका कुप्रभाव दूसरो पर पड़ सकता है, और उनके परिचय का गलत प्रचार होकर अन्य लोगो के सम्यक्त्व मे दूषण का कारण बन सकता है। एक । अग्रसर-सैकडो हजारो पर प्रभाव रखने वाले व्यक्ति को, यह ध्यान रखना पडता है कि उसकी किसी प्रवृत्ति का कोई दुरुपयोग नहीं करले । परपाखडी परिचय का प्रत्यक्ष प्रमाण हमारे सामने मौजूद है । ओसवाल जाति के लोग सभी जैनी ही हैं, कितु मेवाड मारवाड मे अनेक ओसवाल वैष्णवादि भी हैं । इसका कारण यह दोष ही है । राजादि के विशेष परिचय मे रहने के कारण वे भी उनके मत के हो गये । स्थानकवासी, भीखणजी के परिचय से तेरापंथी और कानजी के परिचय से सोनगढ पंयी हो गये, यह सभी जानते हैं । आनन्द हजारो के लिए आधारभूत था, अनुकरणीय था। उसकी प्रवृत्ति का दूसरे लोग अनुकरण करते थे । इसलिए उसने परपाषंड-प्रशंसा और परपाषंड-परिचय का घोषणापूर्वक निषेध किया। उसके इस प्रकट निषेध का, उसका अनुकरण करने वालो पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा होगा । वह स्वय या तो 'संघपति' अथवा संघपति के समान था । संघ रक्षा उसके ध्यान मे थी। वह दृढधर्मी था, सवाल जाति वादि भा।
SR No.010468
Book TitleSamyaktva Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1966
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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