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________________ ५ परपाषंड परिचय यह दोष अति भयंकर है। सोबत का कुछ न कुछ असर हो ही जाता है । जिस प्रकार सक्रामक रोग की लपट मे साधारण जनता आजाती है, उसी प्रकार दूसरो के परिचय का असर भी न्यूनाधिक होता ही है । अच्छे परिचय का अच्छा प्रभाव होता है और बुरे का बुरा । सम्यक्त्व की प्राप्ति, वृद्धि और शुद्धि के लिए 'परमार्थ सस्तव (परिचय) आवश्यक है, तो दोष से बचने के लिए 'परपाषडी परिचय' से दूर रहना भी उतना ही आवश्यक है । 'परमार्थपरिचय' सम्यक्त्व को दृढीभत करता है, तो 'परपाषंडी परिचय,' सम्यक्त्व को नष्ट करने का कारण बन जाता है। इसलिए श्रमणो और श्रमणोपासको के लिए इस दोष से दूर रहने का विधान किया गया है। विश्वपूज्य, परम वीतराग भगवान् महावीर प्रभु ने श्रावक शिरोमणि श्री अानन्दजी को सम्बोधन करते हुए फरमाया कि -"एवं खल आणंदा ! समणोवासएणं अभिगयजीवाजीवेणं जाव अणइक्कणिज्जणं सम्मत्तस्स पंच अइयारा पेयाला जाणियन्वा ण समायरियव्वा, तंजहासंका, कंखा, विइगिच्छा, परपासंडपसंसा, परपासंडसंथवे"। (उपासकदसा) भगवान् का धर्मोपदेश सुनकर आनन्द प्रतिबोध पाया और उसने श्रावक के व्रत धारण किये । उसके व्रत ग्रहण करते ही उपरोक्त सूत्र से आनन्द को सम्बोधन करते हुए भगवान् ने सबसे पहले पाँचो प्रकार के दोषो से बचते रहने का उपदेश दिया ।
SR No.010468
Book TitleSamyaktva Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1966
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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