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________________ ७६ किये हैं वह शरीर तो यहां ही रह जाता है तो फिर ईश्वर के विना उन कर्मों को कौन याद करवाता है ? जिस करके, वह कर्म नोगे जावें. जैनी:- क्या, तेरा ईश्वर जीवों के कर्म याद कराने के वास्ते कर्मों का दफ्तर लिख रखता है ? यदि ईश्वर एक श् जीव के कर्म याद कराने लगे तो ईश्वर को असंख्य-नन्त काल तक जी वारी न आवेगी. और उन जीवोंको अपने किये कर्म का भुगतान अनन्त काल तक जी न दोगा, क्यों कि संसार में जीवों की अनन्तता है. प्रारिया - तो फिर कैसे कर्म जोगा लाय ? जैनः - अरे नोले जाई ! हम अनी, ऊपर लिखं आये हैं, कि सञ्चितकर्म अन्तःकरण में जमा सो इस जीव की स्थूल, 4
SR No.010467
Book TitleSamyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherKruparam Kotumal
Publication Year1905
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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