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________________ . में अंसाकरणरुप हो के फी का जाना और ' उन्का निमित्तों से फल का होना सिद्ध किया है ७५ १७ प्रभ-क्यों जी, पहिले जीव है कि कर्म? उत्तर-जवि और कर्म दोनों ही अनादि है । पहल किसकी कहै ? प्रश्न:- तो फिर अनादि को से मुक्ति कैसे होय उत्तर में चार प्रकार के सम्बंधों का विस्तार सहित स्वरुप लिखा है. ८० .. • प्रभ-भजी, पदार्थ झान किसे कहते हैं ? उत्तर--संसार में २ पदार्थ है. १ चेतन २ जब; जिसमें परमाणु का स्वरूप और पुदगल के स्वभाव का प्रणामी होना जिस्की ४ अवस्था भौर पट् भेदका स्वरूप दृष्टांत सहित लिखा गया है ... ... ... ... ८९ । ८ प्रश्न-दृष्टि का कती ईश्वर ही को मानते है ? उत्तर में ईश्वर का कती न होना और सृष्टि का सिल सिला परवाह रूप अनादि होना सिद्ध किया गया है ... ... .१० २ ९ प्रभ-पदि ईश्वर को सृष्टि का कर्ता न माना जाय तो ईश्वर को जाना कैसे जाय ? उत्तरमें ईश्वर का स्वरूप शास्त्रद्वारा और .. दलील से भी जानना सिद्ध किया है १२१ ७८ • प्रभ-धर को सुख दुःख का दाता न माने तो ईश्वर का नाम लेने से क्या लाभ है ? उत्तर-वृत्ति की शुद्धि का होना ऐसा दृष्टांत सहित सिद्ध किया गया है. ... ... १२२ 2011 ३१ प्रभजन पहिले है कि आर्य ? इसका उत्तर-आर्य नाम तो जैनीयों का ही है, इस्में सूनका प्रमाण दिया है और जैनी आर्य भावक और साधुवों के नियम भी लिखे है , भौर जैनी साधों के उपदेश से राजा महाराजा.' "'. .
SR No.010467
Book TitleSamyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherKruparam Kotumal
Publication Year1905
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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