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________________ - च बोलना, (३) इमानदारी, (४) बन्दगी वगैरः२ जैनी:-क्या ना मंजूर है ? . मुसल्मानः-(२) हरामी, (२) चोरी, । (३) चुगलखोरी, (४) वे रदमी,(५) वे इमानी, (६) ब्याज खाना, (४) सूअर मांस, () मदिरा (शराब), वगैरः २ . जैनी:-तो फिर खुदा के हुक्म बिना न__ पर लिखे हुए दुष्ट ( खोहे) कर्म क्यों हो ते हैं? अब या तो तुम्हारा पहिला कथन [कहना] गलत है कि, खुदा के हुक्म बिना पत्ता नी नहीं हिलता; (२) या तो खुदादी के हुक्म से उपर लिखे दुष्कर्म होते हैं! तो यद तुम ही विचार कर लो कि तुम्हारा खुदा फैसे दुष्ट कम करवाता है ? (३) क्या खु.. दा के हुक्म से विनादुष्ट कर्म करने वाले खुदा से बलवान् (जबरदस्त) हैं, जो खुदा को रद्द [अदल] के निन्दित कर्म करते हैं? अव यह
SR No.010467
Book TitleSamyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherKruparam Kotumal
Publication Year1905
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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