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________________ आरियाः-अपनी ही चा से... जैनी:-क्या, ईश्वर में चोरों को चोरी से रोकने की शक्ति नहीं है? क्यों कि, विना ही श्या के काम तो उर्बल अर्थात् कमजोर वा परतंत्र [ पराधीन ] के होते हैं; और इश्वर तो स्वतंत्र [खुद मुख्त्यार] और सर्वशक्तिमान् स्वीकार [माना गया है, तो फिर उस की इबा के बिना ही चोरी क्यों कर हुई ? इससे यह समझा जावेगा कि ईश्वर सर्व शक्तिमान नहीं है; क्यों कि ईश्वर की इंहा के विना ही कुत्सित ( खोट्टे ) कर्म होते हैं, जिस प्रकार से तुमारे सम्बत् १५४ के उपे. हुए "सत्यार्थ प्रकाश " के १९३ पृष्ट में लिखा हैः-( प्रश्न ) परमेश्वर क्या चाहता है ? (उत्तर).सब की नला और सव का सुख चाहता है. अब विचारने की बात है कि वह तो चाहता नहीं कि किसी की बुराई वा किसी को कष्ट हो (कुकर्म हों);परन्तु होते है.
SR No.010467
Book TitleSamyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherKruparam Kotumal
Publication Year1905
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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